Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥दिनशुद्धिः॥
४५३ बव-बालव-कोलव-तेतिलक गर-वणिश्र-विहिनामाणो ।
पायं सवे वि सुहा एगा विही महापावा ॥ १३ ॥ शकुनि, चतुष्पाद, नाग अने किंस्तुघ्न ए चार करणो स्थिर बे. ते दरेक त्रीश त्रीश घमीनां होय बे. तेमां पहेलुं शकुनि कृष्ण चतुर्दशीनी रात्रे होय बे, बीजुं चतुष्पाद अमावास्याने दिवसे होय , त्रीजुं नाग अमावास्यानी रात्रिए होय जे अने चोथु किंस्तुघ्न शुक्लपदना प्रतिपद्ने दिवसे होय , त्यारपनी चर करणोनां नाम था प्रमाणे वे.-बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज अने विष्टि. प्राये था सर्वे (स्थिर अने चर) करणो शुक्ल बे, पण एक विष्टि महा पापा-महाअष्ट . १२-१३.
विष्टि क्यारे होय ने ते कहे .किण्हे परके दिणे नदा सत्तमी अ चउद्दसी ।
रत्तिं दस मि तीथाए सुके एगदिणुत्तरा ॥ १४ ॥ कृष्णपक्षमा सातम अने चौदशना दिवसने विषे जत्रा (विष्टि ) होय ने अने दशम तथा त्रीजनी रात्रिए नत्रा (विष्टि ) होय बे. अने शुक्लपक्षमा एक दिवस पी आवे जे, एटखे के आवम अने पूनमना दिवसे तथा श्रगीयारश अने चोथनी रात्रिए लजा होय . १४.
जना का तिथिए कया पहोरमां का दिशाए सन्मुख होय ते कहे जे.चउद्दसी अहमि सत्तमीए राका चनत्थी दसमी जहा। एगारसी तीश कमा दिसाहिं तस्संखजामे निमुहाऽतिपावा॥१५॥
यंत्र चौदशे पहेला पहोरमां पूर्व दिशाए ना सन्मुख होय , तिथि | प्रह र दिशा | श्राम्मे अग्नि खूणामां बीजे पहोरे सन्मुख होय बे, सातमे १४ । १ पूर्व
| अग्नि त्रीजा पहोरे दक्षिण दिशामां, पूर्णिमाए चोथा पहोरे नैर्ऋत्य -
| ३ दक्षिण खूणामां, चोथे पांचमे पहोरे पश्चिम दिशामां, दशमे बछे १५ नैत्य पहोरे वायव्य खूणामां, अगीयारशे सातमे पहोरे उत्तर ४ ५ पश्चिम दिशामां अने त्रीजे श्रावमे पहोरे ईशान खूणामां जना सन्मुख होय . श्रा सन्मुख नत्रा अति उष्ट बे. १५. | ३| |
| वायव्य
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