Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 477
________________ ॥समशुद्धिः ॥ ४४१ पजणाए दिछीए चउत्थयं अहमं च पिछति । सवाए सत्तमयं सुहासुहफलं च दिहिसमं ॥ १०१ ॥ सर्व ग्रहो पोताना स्थानथी दशमा तथा त्रीजा स्थानने एक पाद दृष्टिए जुए बे, नवमा तथा पांचमा स्थानने बे पाद दृष्टिए जुए चे, चोथा तथा आठमा स्थानने पोणी एटले त्रण पाद दृष्टिए जुए के, अने सातमा स्थानने सर्व एटले चार पाद दृष्टिए जुए बे. या सर्वन शुजाशुन फळ दृष्टिनी जेवं जाणवु. १००-१०१. इति उदयास्तशुद्धिः। लग्गस्स गहा बलियो हवंति ते जत्थ संठिया गणे। तं वुद्धं दिकाए पढमं पछा पश्चाए ॥ १२ ॥ ते लग्नना ग्रहो जे स्थाने रहीने बळवान् होय रे ते प्रथम हुँ दीक्षाने आश्रीने कहूं , अने पछी प्रतिष्ठाने श्राश्रीने कहीश. १०२. दिका लग्गे दो पंच 3 कारसो रवि सुदउँ । चंदो बीउ तर्ज बहो कारसो तहय ॥ १०३॥ दीक्षा लग्नमां रवि बीजे, पांचमे, बछे के अगीयारमे होय तो ते शुल ने, चंग बीजे, त्रीजे, के के अगीयारमे शुज बे. १०३. ता हो दसमो श्कारसमो कुजो बुहो असुहो। लग्गगर्ड चउ पंच सत्तम नव दसमगो थ गुरू ॥ १०४ ॥ मंगळ अने बुध लग्नथी त्रीजे, ब, दशमे के अगीयारमे होय तो शुलने, गुरु पहेले चोथे, पांचमे, सातमे, नवमे के दशमे शुल . १०४. त हो नवमो वालसो सुंदरो नवे सुक्को। बी पंचम अहमो अश्कारसो असणी ॥ १५ ॥ शुक्र त्रीजे, ब, नवमे के बारमे होय तो सारो, अने शनि बीजे, पांचमे, श्रावमे के अगीयारमे होय तो शुक्ल ने. १०५. उपर कहेलानेज संदेपथी कहे .उपणछो उतिबके तिबदसि तिबदसि तिकोणकिंदेसु । तिबनवबारसि उपण सविगारेसियं मुत्तुं ॥ १०६ ॥ लग्नथी रवि बीजे, पांचमे, बछे सारो, चं बीजे, त्रीजे, उठे शुल, मंगळ त्रीजे, बने, दशमे सारो, बुध त्रीजे, बछे, दशमे सारो, गुरु त्रिकोण एटले नवमे, पांचमे तथा केंज भा०५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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