Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 474
________________ ४३० ॥ सनशुद्धिः॥ तुलाना ३३७, वृश्चिकना ३७, धनना ३४३, मकरना ३०३, कुंजना २५१ अने मीनना १ए पळ . ०२. विस १४ मयराण १४ चउदसे अहमए मीण कक कन्नाणं । नायम्मि बारसे विछियस्स १२ कुंनस्स बबीसे २६ ॥७३॥ चवीसमे तुलाए २४ मेसस्सिगवीसमंमि नागम्मि १। सीहस्स हारसमे रन्धणमिहुणाणं च सत्तरसे १७ ॥ ४ ॥ श्य तीसश्नागेसु डवग्गो हुँति पंचवग्गो वा । सोमग्गहाण तण दियशठियकङसिछिकरो ॥ ५॥ वृष अने मकर- लग्न होय तो तेनो १४ मो त्रिंशांश, मीन, कर्क अने कन्या लग्न होय तो तेनो पाठमो त्रिंशांश, वृश्चिक लग्ननो वारमो त्रिंशांश, कुंन लग्ननो ग्वीशमो, तुला लग्ननो चोवीशमो, मेष लग्ननो एकवीशमो, सिंह लग्ननों अढारमो अने धन तथा मिथुनर्नु लग्न होय तो तेना सत्तरमा त्रिंशांशमां ब वर्गनी अथवा पांच वर्गनी शुद्धि होय बे. तेमां जो सौम्य ग्रहो स्वामी होय तो ते हृदयना इचित कार्यनी सिद्धि करनार थाय . ०३-०४-०५. अन्ने नवंसगं चिय एगं चित्तूण सोमगहतणयं । पत्नणंति लग्गसुहिं विणा वि बवग्गसुखीए ॥ ६ ॥ केटलाएक श्राचार्यो उ वर्गनी शुद्धि न होय तोपण सौम्य ग्रह जेनो स्वामी होय एवा एक नवांशनेज ग्रहण करीने लग्ननी शुद्धि कहे . ७६. गिह होराई लग्गे गहस्स जं जस्स संतिथं हो। तं संप पयमत्थं वुद्धं अबुदाण बोहत्थं ॥७॥ लग्नने विषे गृह तथा होरा विगेरेने तथा जे लग्ननो जे स्वामी होय तेने हवे अज्ञात जनना बोधने माटे हुं प्रगटपणे कहुँ खं. ७७. कुजसुक्कबुहिंऽरविबुदसियकुजगुरुसणीसणीगुरूणं । मेसाश्या उ बारस लग्गाण घराशे जहसंखं ॥ ७ ॥ मंगळ १, शुक्र २, बुध ३, चं ध, रवि ५, बुध ६, शुक्र , मंगळ ७, गुरु ए, शनि १०, शनि ११ श्रने गुरु १३ ए मेष श्रादिक बार लग्नना ग्रहो अनुक्रमे . ०७. ।शति गृहम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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