Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ पञ्चमो विमर्शः ॥
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कार कर्यो होय ते अंशथी पंचावनमोज अंश निंदित ( शुक्र के क्रूर ) ग्रहे करीने दूषित होय तो ते परम जामित्र नामनो दोष बे, माटे तेनो त्याग करवो.
लग्न ने चंना अधिकार करेला अंशथी पंचावनमोज अंश निंदित ग्रहे करी युक्त होय तो ते निंदित ग्रहनाज कारणथी परम जामित्र नामनो दोष थाय बे, माटे तेनेज केटलाक आचार्यो तजे बे-तजवानुं कहे बे. जावार्थ ए बे जे-जेटलामो नवांश लग्नने विषे अधिकार ( स्वीकार ) कर्यो होय तेटलामोज सातमा स्थाननी राशिमा रहेलो नवांशो पंचावनमो होय बे. तेज रीते चंद्र पण जे राशिमां जेटलामा नवांशामां होय ते राशिथी सातमी राशिनो तेटलामो नवांशो चंद्रना नवांशाथी पंचावनमो होय बे, तेथी लग्नना अंशथी अथवा चंद्रना अंशथी पंचावनमा नवांशामां जो क्रूर ग्रह के शुक्र होय तो ते परम जामित्र नामनो दोष थाय बे. जेम मेष राशिना पहेला शमां लग्न अथवा चंद्र होय अने तुलाना पहेला अंशमां क्रूर ग्रह के शुक्र होय, अथवा मेषना बीजा अंशमां लग्न के चंद्र होय अने तुलाना पण बीजा अंशमां क्रूर ग्रह के शुक्र होय, अथवा एज रीते त्रीजा, चोथा विगेरे अंशोमां ते ते प्रमाणे होय तो ते अवश्य तजवा योग्य बे. कह्युं बे के
"लग्नेन्डुसंयुतादंशात् पञ्चपञ्चाशदंशके ।
ग्रहोऽन्यो यद्यसौ दोषो न गुणैरपि हन्यते ॥ १ ॥ "
"लग्न के चंद्रना अधिकार करेला अंशथी पंचावनमा अंशने विषे जो कोइ ग्रह श्रावतो होय, अने जो ते दोषरूप यतो होय तो ते दोष बीजा गुणोए करीने प हणतो नथी” एम दैवज्ञवजमां कह्युं बे, परंतु जो पंचावनमा शंथी न्यून अथवा अधिक शुक्र के क्रूर ग्रह होय तो ते जामित्र नामनोज दोष कहेवाय बे, पण ते परम जामित्र थतो नथी. जेमके मेष राशिना त्रीजा अंशमां लग्न के चंद्र होय, अने तुलाना पहेला के बीजा श्रंशमां शुक्र के क्रूर ग्रह होय त्यारे ते त्रेपनमो के चोपनमो
शथयो, अने ज्यारे मेषना पहेला अंशमां लग्न के चंद्र होय, अने तुलाना बीजा, त्रीजा के चोथा अंशमां क्रूर ग्रह के शुक्र होय त्यारे ते मेषना पहेला अंशथी बप्पनमो, सत्तावन के घावनमो अंश थयो. विगेरे स्थळे केवळ जामित्र दोष थाय बे, श्रने
दोष अत्यंत दुष्ट नथी एवो तेनो मत बे. आ मत घणाने पण संमत बे.
वे प्रतिष्ठाने श्रीने ग्रहोनी युति ने दृष्टिनुं फळ कहे बेस्थापने स्युर्विधौ युक्ते दृष्टे चाऽऽरादिनिः क्रमात् । अमिनी १ रुद्धि २ सिद्धार्चा ३ श्री ४ पञ्चत्वा ५ ग्निजीतयः ६ ॥ २८ ॥
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