Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ श्ररं सिद्धि ॥
पांच होय तो पुत्रनुं शस्त्रथी मरण याय ५, बहे होय तो शत्रुनो नाश थाय ६, सात होय तो स्त्रीनो नाश थाय 9, आवमे होय तो स्वजननो नाश थाय छ, नवमे होय तो गुणनो नाश थाय ए, दशमे होय तो रोग थाय १०, गीयारमे होय तो धन प्राप्ति थाय ११ ने बारमे होय तो हानि थाय १२. "
" चिरमहिम १ धन २ रिपुक्ष्य ३ सुख ४ सुत ५ परिपन्थिमरण ६ वरकन्याः ७ । शशिजेन सूरिमृत्यु र्वसु ए कर्मा १० जरण ११ रैनाशाः १२ ॥ ४॥”
"बुध पहेले स्थाने होय तो ( प्रतिमानो ) घणा काळ सुधी महिमा रहे १, बीजे होय तो धननो लाज थाय १, त्रीजे होय तो शत्रुनो दय थाय ३, चोथे होय तो सुख मळे ४, पांच होय तो पुत्रप्राप्ति थाय ५, बहे होय तो शत्रुनो नाश थाय ६, सातमे होय तो श्रेष्ठ स्त्रीनी प्राप्ति याय 9, आठ होय तो आचार्यनुं मरण थाय, नवमे होय तो धन मळे ए, दशमे होय तो कार्यसिद्धि थाय १०, अगीयारमे होय तो आभूषण मळे ११ ने बारमे होय तो धननो नाश थाय १२. "
"कीर्ति १ वृद्धिः २ सौख्यं ३ रिपुनाशः ४ सुतसुखं ५ स्वजनशोकः ६ । स्त्रीसुख गुरुमृति धन ए लान १० इयो ११ हानि १२ रमर गुरोः ॥ ५ ॥ " "गुरु पहेले स्थाने होय तो कीर्ति वधे १, बीजे स्थाने होय तो वृद्धि याय २, चीजे होय तो सुख मळे ३, चोथे होय तो शत्रुनो नाश थाय ४, पांच होय तो पुत्रनुं सुख मळे ए, बहे होय तो स्वजननो शोक थाय ६, सातमे होय तो स्त्रीनुं सुख मळे 9, आठ होय तो गुरुनुं मरण थाय छ, नवमे होय तो धन मळे ए, दशमे होय तो लाज थाय श्रीयारमे होय तो शद्धि प्राप्त थाय ११ अने बारमे होय तो हानि ( मरण) थाय १२. " “सिद्धि १ धन २ मान ३ तेजः ४ स्त्रीसुख ५ पुष्कीर्तयः ६ सुताप्ति युता ।
१०,
चैत्यादिसर्वहानि 9 वासुख ८ मितरेषु ए-१०-११-१२ पूज्यता शुक्रात् ॥ ६ ॥ " "शुक्र पहेले स्थाने होय तो कार्यसिद्धि थाय १, बीजे होय तो धन मळे २, बीजे होय तो मान पामे ३, चोथे होय तो तेज वधे ४, पांचमे होय तो स्त्रीनुं सुख मळे ए,
होय तो अपयश मळे ६, सातमे होय तो पुत्रनी प्राप्ति तथा चैत्य विगेरे सर्वनो विनाश थाय प्र, ठमे होय तो असुख थाय तथा नवमे, दशमे, अगीयारमे के बारमे होय तो पूज्यपणुं प्राप्त थाय.”
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" पूजा १ कर्तृविघात १ जूरिविजव ३ प्रासादबन्धुयाः ४, पुत्राम ए विपक्षरोगविलय ६ ज्ञातिप्रियाव्यापदः ७ । गोप्राणविपत्ति पातकपरिष्वङ्गौ ए च कार्यक्षतिः १०, कान्ताकाश्ञ्चनरत्नजीवितधनं ११ मन्देन मान्द्योदयः १२ ॥ ७ ॥"
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