Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ पञ्चमो विमर्शः॥
श्ए "स्वतनुविनाशो वैनाशिके हते मानसे मनस्तापः।
कुलदेशस्त्रीनाशो जातिनदेशानिषेकेषु ॥३॥" "विनाशनक्षत्र हणायुं होय तो पोताना शरीरनो नाश थाय, मानसनक्षत्र हणायु होय तो मनमां संताप (जग) थाय, जातिनक्षत्र हणायुं होय तो कुळनो नाश थाय, देशनात्र हणायुं होय तो देशनो नाश थाय , अने अनिषेकनक्षत्र नाश पाम्युं होय तो स्त्रीनो नाश थाय ."
अनिषेकनन्त्र तथा देशनात्र आ प्रमाणे वे."राज्याभिषेकदिवसेऽनिषेकधिष्ण्यं च देशनकत्रम् ।
पद्मविन्नागे शेयं प्रादक्षिण्येन नूमध्यात् ॥४॥" "राज्याभिषेकने दिवसे जे नक्षत्र होय ते अभिषेकनत्र जाणवू, अने पृथ्वीना मध्य नागथी प्रदक्षिणाना क्रमे पद्मचक्रना विनागमा देशनक्षत्र जाणq." (एटखे के पृथ्वीना मध्य नागथी जे दिशा के विदिशामा जे देश होय ते दिशा के विदिशामां पनचक्रने विषे जे नक्षत्रो होय ते देशनकत्रो जाणवां.)
.. पद्मचक्रनी स्थापनानी रीत था प्रमाणे जे."कर्णिकाष्टदलैराव्ये पद्मे नानौ दलेषु च ।
प्राच्यादिस्थेषु नानीह न्यस्याग्निजत्रयादितः ॥५॥" "कर्णिका (नानि) तथा श्राप पांखमी सहित एक पद्म (कमळ ) करवू, तेनी नालिने विष तथा पूर्वादिकना अनुक्रमे रहेली पांखमीउने विषे कृत्तिकाथी आरंजीने त्रण त्रण नक्षत्रो मूकवां."
पद्मचक्र यंत्र.
(उ.पू-शक रोम-उ-हचि
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भा०३८
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