Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ पञ्चमो विमर्शः ॥
३११ "सूर्योदये यथा तारा विनश्यन्ति समन्ततः।
यथाग्निरम्बुना लग्नं तथा वृधिक्षये तिथिः (थे)॥१॥" "जेम सूर्यनो उदय थाय त्यारे चोतरफथी तारा नाश पामे , तथा जेम जळवमे करीने अग्नि लवाजाय ने तेम तिथिनी वृद्धि अथवा क्य थवाथी लग्न विनाश पामे बे." ___आ उपर कहेला अढार दोषो शुद्ध नत्रना बळे करीने गया लग्न विगेरेमां ज्यारे प्रतिष्ठा के दीदा विगेरे कार्य करवामां आवे ने त्यारे पण अवश्य वर्जवा योग्य मे, तो पठी घटिका लग्नने विषे त्याग करवामां तो शुं कहेवू ? अर्थात् अवश्य वर्जवाज जोशए. श्रा दोषोने मध्ये केटलाक दोषोनो नंगविधि पूर्वाचार्योए था प्रमाणे कह्यो बे.
_ "लग्ने गुरुः सौम्ययुतेक्षितो वा, लग्नाधिपो लग्नगतस्तथा वा ।
कालाख्यहोरा च यदा शुना स्यानवेधदोषस्य तदा हि नङ्गः॥१॥" "विवाह समये गुरु सौम्य ग्रहे युक्त होय, अथवा सौम्य ग्रहनी तेना पर दृष्टि पमती होय, अथवा लग्ननो स्वामी होय अथवा लग्नमां रहेलो होय, तथा ज्यारे काळहोरा शुन (सारी) होय त्यारे नक्षत्रवेध नामना दोषनो नंग थाय बे, एटले के था दोष लागतो नथी." अहीं नत्रवेधनोज जंग कह्यो ने, तेथी नवना पाद वेधरूप दोषनो जंग थतो नथी एम जाणवू. वळी व्यवहारप्रकाशमां तो वेधने उलटो शुन पण कह्यो बे, ते या रीते.
"सौम्यैश्चरणान्तरितः शुनः शुनैः केन्गैर्वेधः।" “पादोना अांतरामा रहेला सौम्य ग्रहोए करीने वेध शुक्ल ने तथा शुल (सौम्य) ग्रहो केंजस्थानमा रह्या होय तो वेध शुल बे."
॥ इति वेधदोषनंगः ॥१॥ "एकार्गलोपग्रहपातलत्ताजामित्रकर्तर्युदयादिदोपाः।
लग्नेऽर्कचन्ज्य वले विनश्यन्त्यर्कोदये यमदहो तमांसि ॥१॥" "एकार्गल, उपग्रह, पात, लत्ता, जामित्र अने कर्तरीनो जदय ए विगेरे दोषो सूर्य, चंड अने गुरुए करीने बळवान् लग्न होय तो नाश पामे जे. जेम सूर्यना उदये अंधकार नाश पामे ने तेम." आ प्रमाणे सप्तर्षि कहे जे. तथा केटलाक आचार्यो कहे जे के
"अंगेषु बंगेषु वदन्ति पातं, सौराष्ट्रयाम्ये खचरस्य सत्ताम् ।
उपग्रहं मालवसैन्धवेषु, गएकान्तयुक्तिं सकले पृथिव्याम् ॥१॥" "अंग तथा बंग देशमां पात दोष वर्जवानो कह्यो बे, सौराष्ट्र देश तथा दक्षिण देशमा ग्रहनी लत्ताने वर्जवानी कही बे, मालव अने सिंध देशमां उपग्रहने वर्जवानो कह्यो ने, तथा पृथ्वी पर सर्व स्थाने गंमांतने वर्जवानो कह्यो बे." वळी वामदेव तो आ प्रमाणे कहे .
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