Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
१९८
प्रयाण कर.” तात्पर्य बे.
॥ श्रारं सिद्धि ॥
रीते प्रयाण करवाथी सूर्य जमणी बाजुए ज रहे बे ए च श्लोकनुं
फरीथी पण चंद्र ने सूर्यना वारनी अनुकूळता ज कहे बे के "रविशशिरप्रदीघां मकरादावुत्तरां च पूर्वी च । यायाच्च कर्कटादौ याम्यामाशां प्रतीचीं च ॥ १ ॥ नानुकूलयानं हितमर्केन्धोर्धयोरसंपत्तौ ।
निशं प्रगृह्य यायादिपर्यये क्लेशवधबन्धाः ॥ २ ॥ "
“मकरादिकमां सूर्य ने चंद्रनां किरणोथी प्रदीप्त अयेली उत्तर तथा पूर्व तरफ प्रयाण कर ने कर्कादिकमां दक्षिण तथा पश्चिम दिशामां प्रयाण कर. सूर्य is ए बेनी प्राप्ति होय तो यनने अनुकूल प्रयाण हितकारक बे, एटले रात्रि दिवस ग्रहण करीने गमन कर. तेथी जलडुं करवाथी क्लेश, वधाने बंधन याय बे." अहीं जावार्थ ए बे जे– “ज्यारे सूर्य छाने चंद्र मकरादिक व राशिमां एटले उत्तरायणमां होय त्यारे पूर्वमां तेमज उत्तरमां सर्वदा ( रात दिवस) गमन करवु, अने या कर्कादिक राशिमां एटले दक्षिणायनमां होय त्यारे दक्षिण ने पश्चिममां सर्वदा गमन कर, पण सूर्याने चंद्र जो एक अयनमां न होय तो अनुक्रमे दिवसे रात्रि गमन कर, एटले के ज्यारे सूर्य उत्तरायणमां होय त्यारे दिवसना जागमां उत्तर तथा पूर्वमां गमन कर, छाने ज्यारे सूर्य दक्षिणायनमां होय त्यारे दिवसना जागमां दक्षिण पश्चिममां गमन कर. ए ज प्रमाणे चंद्र उत्तरायणमां होय त्यारे रात्रिए उत्तर तथा पूर्वमां गमन कर ने दक्षिणायनमां होय त्यारे रात्रिए दक्षिण छाने पश्चि
मां गमन कर. एथी उलडुं करवाथी अशुभ बे, एटले के सूर्य ने चंद्र मकरादिकमां रह्या होय त्यारे जो दक्षिण ने पश्चिममां गमन करे, तथा कर्कादिकमां रह्या होय त्यारे जो उत्तर ने पूर्वमां गमन करे, तथा सूर्य मकरादिकमां रह्यो होय त्यारे दिवसना जागमां जो दक्षिण ने पश्चिममां गमन करे, अने चंद्र कर्कादिकमां रह्यो होय त्यारे जो रात्रिए उत्तर के पूर्वमां गमन करे तो गमन करनारने वध, बंध विंगेरे दोष प्राप्त थाय बे.
Jain Education International
w
वेरविचारने ज हंस ( वायु ) नी गति ( स्वरोदय व विशेष प्रकारे कहे बे. - हंसेऽन्तराविशति दक्षिणतोऽथ पृष्ठे, कृत्वा रविं प्रवदनामिपदं पुरश्च । सियै व्रजेदथ विजेतुमना विपक्ष
पक्ष स्वतस्तु विदधीत वितानपदे ॥ १७ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org