Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२०६
॥ श्रारंसिद्धि ॥
रविचार चक्र
राहुचार चक्र
मंगळ, बुध,गुरु, शुक्र, शनिचार चक्र
पूर्व सिंह कन्या तुला
पूर्व
मीन मेष वृष
धन मकर कुंभ
उत्तर धन मकर कुंभ
मिथुन कर्क सिंह
दक्षिण
उत्तर कन्या तुल वृश्चिक
मीन मेष वृष
दक्षिण
वृष मिथुन कर्क
उत्तर
वृश्चिक धन मकर
दक्षिण
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वत्सचार चक्र उपर श्राप्यु बे.
अही प्रसंगोपात्त शिवचार लखे ."मेषेऽर्काउत्तरादौ दिशि विदिशि शिवो मासमेकं तथा घौ, संहत्या संस्थितो दिज्रमति नृशमहोरात्रमध्ये तु सृष्ट्या । अध्यर्धे नामिके दिशि विदिशि घटीपञ्चकं चैष तिष्ठन् ।
चन्तादेः प्रातिकूट्यं हरति किरति शं दक्षिणपृष्ठगोऽसौ ॥१॥" "मेष राशिमा रहेला सूर्यथी उत्तरादिक दिशामा उत्क्रमश्री फरे ले. दिशामा एक मास तथा विदिशामां बे मास सुधी रहे बे. ते शिव एक दिवस रात्रिमा थश्ने बे वार अनुक्रमे भ्रमण करे , तेथी दरेक दिशामां ते शिव अढी अढी घमी रहे , अने दरेक विदिशामां पांच पांच घमी रहे बे. नावार्थ ए के के मेषनो सूर्य होय त्यारे प्रथम श्रढी धमी शिव उत्तर दिशामां होय, पनी पांच घमी ईशानमां, पी अढी घमी पूर्वमां एम एक अहोरात्रमा बे वखत फरे बे.. पली वृष तथा मिथुनना सूर्य होय त्यारे बे मास प्रथम पांच घमी वायव्यमां, पजी अढी घमी उत्तरमांएम क्रमे भ्रमण करे बे. पठी कर्कमा प्रथम पश्चिममां आ प्रमाणे जाणवू. श्रा शिव जमणी वाजु अथवा पाळना नागमा रह्यो होय तो चंगादिकनी प्रतिकूळतानो नाश करे ने तथा सुख आपे . चंसादिके करीने ताराउनी तथा तेनी अवस्थानी पण प्रतिकूळतानो नाश करे बे एम जाणवू.
१ उत्क्रमथी. २ क्रमथी. १ डाबी वाजुने क्रमे. २ जमणी बाजुने क्रमे.
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