Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ पञ्चमो विमर्शः॥
ՋԵՍ मूळ श्लोकमां त्रिंशांश एटले संक्रांतिना मासनो त्रीशमो जाग एटले सामान्ये करीने एक दिवस. संक्रांतिना दिवसनी पहेलानो अने पीनो एक एक दिवस तथा संक्रांतिनो दिवस एम त्रण दिवस वर्जवा. ते विषे हरिलजसूरि पण कहे जे के
___ “संकंतीए पुर्व संकंतिदिणं तयग्गिमं च दिणं ।
वजिति" "संक्रांतिनो पूर्व दिवस, संक्रांतिनो दिवस अने तेनी पनीनो दिवस वर्जवो.” नारचंजमां पण कडं बे के
____ “त्यज संक्रमवासरं पुनः सह पूर्वेण च पश्चिमेन च ।” "पूर्वना अने पीना दिवस सहित संक्रांतिनो दिवस तुं तज." "अत्यंत आवश्यक तथा उतावळना कार्यमां जो त्रण दिवसनो त्याग न थक्ष शके तो संक्रमणसमयनी पूर्वनी अने पीनी सोळ सोळ घमी अवश्य तजवी" एम घणा श्राचार्योनो मत .
नार्धयामगएमान्तकुलिकोत्पातपूषितम् ।
दिनं तपसि राकां च स्थापने च कुजं त्यजेत् ॥७॥ अर्थ-जत्रा, अर्ध प्रहर, गंमांत, कुलिक अने उत्पाते करीने भूपित एवा दिवसनो त्याग करवो, तथा दीक्षामां पूर्णिमानो त्याग करवो, अने प्रतिष्ठामां मंगळवारनो त्याग करवो. ____ विवेचन-लजा विगेरे असाध्य दोपोए करीने लग्न पण हणाय ने एटले दूषित थाय बे. ते विषे विवाहवृंदावनमां कडं जे के
"गंमान्तेषु सवैधृतावुनयतः संक्रान्तियामध्ये,
__ यामार्धव्यतिपातविष्टिकुलिकैर्जग्नं विलग्नं जगुः।" "अर्ध प्रहर, व्यतिपात, विष्टि (ना) अने कुलिके करीने सहित लग्नने तथा गंमांतमां, वैधृतिमां अने संक्रांतिना पूर्वना अने पसीना बे पहोरमां रहेल लग्मने नग्न (नाश ) कहे ."
मूळ श्लोकमां उत्पात लख्यो जे ते पूर्वे वर्णन करेला पृथ्वी संबंधी विगेरे उत्पातो जाणवा. सारंग तो उत्पातमां पांच दिवस तजवायूँ कहे . ते आ प्रमाणे
"निर्घातोटकामहीकंपग्रहलेदादिदर्शने।
श्रा पञ्चवासराथूढा नाशमानोति कन्यका ॥ १॥" ___ "निर्घात, उल्कापात, पृथ्वीकंप अने ग्रहनो नेद ए विगेरे उत्पातो जोवामां आवे त्यारश्री पांच दिवस सुधीमां जो कन्या विवाहित थ होय तो ते मृत्यु पामे जे.” तथा
"दम्पत्योः सह मरणं पाणिग्रहणोदिते केतौ ।"
भा०३७
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