Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥आरसिद्धि ॥ नथी (पोतानी दृष्टिए पोताने जो शकतो नथी), तेम एक ज अंशमां जन्म्या होय तो समानपणुं थाय ने, माटे वर वहुना व्यवहारनी सिद्धि थश् शकती नथी." एक पाद उतां पण शुल , एम केटलाक कहे -
"पराशरः स्माह नवांशलेदादेकराश्योरपि सौमनस्यम् ।
एकांशकत्वेऽपि वसिष्ठशिष्यो नैकत्रपिंमे किल नामिवेधः॥ ३ ॥" “पराशर कहे जे के नवांशनो नेद होय तो एक नक्षत्र अने एक राशिमां पण प्रीति होय . वशिष्टनो शिष्य कहे जे के एक अंश होय तोपण एक शरीरमा अर्थात् एक नक्षत्रमा नामीवेध अवश्य न होय.” ___ मूळ श्लोकमां “शेषेषु च योः" एवं . तेमां शेष एटले बाकीना एटले के सातमे सातमे, दशमे चोथे, त्रीजे अगीयारमे राशिकूट होय तो ते श्रेष्ठ , कारण के था स्थानोमां राशिउने ज परस्पर मैत्री बे, तेथी तेना स्वामीनी मैत्री विचारवानी नथी. ते विषे गदाधर कहे जे के
"राशिकूटे शुल्ने लब्धे ग्रहमैत्री न चिन्तयेत् ।
अलाने राशिकूटस्य ग्रहमैत्री तु चिन्तयेत् ॥ १॥" __ "राशिकूट शुक्ल प्राप्त थयु होय तो ग्रहनी मैत्री विचारवी नहीं, अने राशिकूट शुल मळयुं न होय तो ग्रहनी मैत्री विचारवी.” तेमां पण एटले सप्तम सप्तम विगेरेमां एक ज स्वामीपणुं होय तो अत्यंत श्रेष्ठ जाणवं.
__ सर्वे बाकीनां राशिकूटोनी स्थापना. | शुल्ल तृतीयैकादश सप्तम सप्तम दशम चतुर्थ | दशम चतुर्थ श्रेष्ठ
श्रेष्ठतर मेष
मकर वृश्चिक
मिथुन मेष
कके
मकर वृश्चिक सिंह तुला कके थुन
कुंज मकर तुला
कन्या कके
वृश्चिक तुला
मीन धन वृश्चिक कन्या धन तुला मकर वृश्चिक कुंज
१०
४
तुला
१० | प
मेष
मान
मीन
मथुन धन
सिंह
वृष
सिह कन्या मीन
धनु
कन्या
कन्या मिथुन
| कुज
सह
मकर
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