Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ द्वितीयो विमर्शः॥ दिक जळ संबंधी कार्य कर्क लग्नमां सिख थाय . मेप लग्नल कहेला कार्य छपरांत वेपार, राजसेवा तथा शत्रुनी संधि विगेरे कार्यो सिंह लग्नमां करवाश्री सिद्ध थाय . शिटप, औषध, नूषण, वेपार विगेरे चर थने स्थिर कार्य कन्या लग्नमां सिद्ध थाय रे. खेती, सेवा, यात्रा विगेरे तथा कन्या लग्नमां कहेला सर्व कार्यों तुला लग्नमां सिद्ध थाय वे. ध्रुव कर्म, राजसेवा, चोरी विगेरे दारुण उग्र कार्य वृश्चिकमां सिख थाय . यात्रा, युद्ध, व्रत विगेरे सत्कार्यो धनुषमा सिद्ध थाय बे. क्षेत्रनो आश्रय तथा जळमार्गे यात्रा विगेरे चर कार्य तथा नीच कार्य मकरमा सिच थाय जे. जळमार्गे यात्रा, वहाण तैयार करवं, बीज वावq, दंन, नेद, व्रत विगेरे तथा नीच कर्म कुंलमां सिद्ध श्राय बे. विद्या, अलंकार, शिटप, पशुकर्म, वहाणनी यात्रा, अभिषेक विगेरे तथा सर्व मंगलिक कार्य मीन लग्नमां सिख थाय .
__ "एतान्युक्तानि संसिद्धिं यांति शुभेष्वजादिषु । .
___ क्रूराणि क्रूरयुक्तेषु शुलानि सशुनेषु तु ॥१॥" "मेषादिक लग्न शुद्ध होय तो ए कहेलां कार्यो सिछिने पामे बे. क्रूर ग्रहोवमे युक्त होय तो क्रूर कार्य सिद्ध थाय अने शुन ग्रह सहित होय तो शुन्न कार्य सिद्ध थाय जे."
हवे राशियोनुं दिक्स्वामित्व तथा स्वन्नाव कहे .-. पूर्वादिदितु मेषाद्याः पतयः स्युः पुनः पुनः।
चरस्थिरहिवजावाः फरारा नरस्त्रियः ॥ ए॥ अर्थ-"पुनः पुनः” “फरी फरीने" ए पद दरेक विशेषण साथे जोमवाथी था प्रमाणे अर्थ थाय जे.-अनुक्रमे पूर्वादिक दिशाओना मेपादिक स्वामी बे. एटले पूर्व दिशानो मेष, दक्षिणनो वृष, पश्चिमनो मिथुन अने उत्तरनो कर्क स्वामी . ए रीते सिंह विगेरे चार तथा धन विगेरे चार अनुक्रमे चार दिशाना इंश कहेवा. एटले दरेक दिशाना त्रण त्रण स्वामी थाय , श्रानुं प्रयोजन यात्रादिकमां ने, तथा चोरायेली के खोवायेली वस्तुना प्रश्नमां वस्तु कर दिशाए ते जाणवा माटे . तथा मेष राशि चर जे, वृष स्थिर ने अने मिथुन विस्वनाव , कारण के तेनी पहेलां वृष ने ते स्थिर ने माटे मिथुननो प्रथम अर्ध नाग स्थिर , अने तेनी पी कर्क जे ते चर वे माटे मिथुननो बीजो अर्ध नाग चर ने ए रीते विस्वन्नाव जाणवो. एम जातक वृत्तिमां कडं . "पुनः पुनः" नो संबंध होवाथी कर्क चर , सिंह स्थिर , कन्या विस्वन्नाव जे. ए रीते अनुक्रमे बारे राशिनु चरादिकपणुं जाणवू. आनुं प्रयोजन ए जे जे चर राशिमां जन्मेला वाळको ते ते स्वन्नाववाळां श्राय तथा मेषने श्रारंजीने अनुक्रमे क्रूर अने अक्रूर तथा पुरुष अने स्त्री एमांनी एक एक संज्ञा पण श्रापवी. एटखे के मेष क्रूर
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