Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ तृतीयो विमर्शः॥
११३ अश्लेपामां जन्मेलानुं फळ श्रा प्रमाणे कडं बे."सापाशे प्रथमे राजा वितीयांशे धनक्षयः।
तृतीये जननी हन्ति चतुर्थे पितृघातकः॥१॥" __ "अश्लेषाना पहेला अंशमां (पादमां ) जन्मे तो राजा श्राय, बीजा अंशमां जन्मे तो धननो क्ष्य थाय, त्रीजा अंशमां जन्मे तो माताने हणे अने चोथामां जन्मे तो पिताने हणे."
___ हवे मूळ नक्षत्रनुं पुरुषस्वरूप कहे .मूर्धा र स्य २ स्कंध ३बाहाकर ५ हृदय ६ कटी गुह्य जानु एक्रमेषु १०, स्युर्घट्यः पञ्च ५ पश्चो५ रग करटिण्कराश्ष्ट नहिदि १०क्तर्कतर्काः६। बालबत्री १ पितृघ्नो २ ऽसलदृढबलवान् ३ राक्षसो ब्रह्मघाती ५, राजा ६ नाशी ७ स्वसौख्यावह इह चपलो ए नश्वर १० श्चासुजातः॥॥
अर्थ-मूळ पुरुषना मस्तक पर पांच घमी मूकवी, मुखमां ५, वे स्कंध पर ७, वे बाहुमां ७, बे हाथमा २, हृदय पर ७, कटी पर २, गुह्य पर १०, बन्ने जानुए ६ श्रने बन्ने पगे ६ घमी मूकवी. अहीं बे स्कंध पर आठ मूकवानी कही बे तेमां दरेक पर चार चार मूकवी. एज प्रमाणे बाहु विगेरेमां पण ब बे लागे मूकवी. वीजे ठेकाणे पण यथायोग्य श्रा प्रमाणे ज जाणवं. श्रा घमीउने विष उत्पन्न थयेलो बाळक थनुक्रमे राजा १, पितृघाती २, दृढ खांधना बळवाळो ३, राक्षस ४, ब्रह्महत्यारो ५, राजा ६, नाशवंत ७, सुखी , चपळ ए, अने नाशवंत (अपायुवाळो). थाय ने अर्थात् मस्तक परनी पांच घमीमां जन्म थयो होय तो राजा थाय, मुखनी पांच घमीमां जन्म भयो होय तो पितृघाती थाय, ए रीते अनुक्रमे जाणवू.
मूळ पुरुषनी स्थापना. मस्तके
राजा मुखे
पितृहंता खांधवाळो
वे स्कंधे
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बेवादुए वे हाथे
कटीए गुह्ये बे जानुए बे पगे
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ब्रह्मघाती राज्यधर अस्पायु सुखी चपळ अल्पायु
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