Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ द्वितीयो विमर्शः॥ चंज नरनी दृष्टिमा ३, बे वाहुमां ६, मुखमां ३, हृदयमां , गुह्यमां ४ अने वे पगमां ५ नक्षत्रो . तेनुं फळ-मुखमां होय तो अत्यंत देहपीमा करे, चकुमां होय तो शुन्ज फळ आपे, हृदयमां होय तो सुख आपे, बाहुमां होय तो लाल आपे, गुह्यमां होय तो मृत्यु आपे, अने पगमां होय तो ज्रमण ( देशाटण ) आपे ( करावे ). अहीं पण चंजना नत्रथी पोताना नत्र सुधी गणतां जेटलामुं नत्र ज्यां होय ते स्थानफळ ते आपे बे.
चंड नरनी स्थापना. १
नेत्रे
.
शुन
w my
हृदये गुह्ये
बन्ने हाथे
लान मुखे
३ अतिपीमा
सुख
मरण बन्ने पगे । ५ त्रमण त्रयं त्रयं त्रिमुखदृशिरस्सु ए घयानि वामेतरबाहुकंठे १५॥ पंचोरसि २० स्युस्त्रितयं च गुह्ये २३ चत्वारि चांहूयोः २७ कुजचक्रमेतत् ॥१॥
कीर्ति शिरसि हुन्नेत्रे लानं चरणयोन॒मम् । ___ गुह्येऽन्यस्त्रीरतिं दत्ते कुजः शेषेषु चाशुनम् ॥ २॥
मंगळ नरनां मुख, दृष्टि अने मस्तक पर त्रण त्रण मूकवां ए, माबे हाथे, जमणे हाथे अने कंठे बवे मूकवां १५, जरःस्थळ उपर पांच मूकवां २०, गुह्यमांत्रण २३, अने वन्ने पग पर चार मूकवां २७. आ मंगळ नरनुं चक्र थयु. तेनुं फळ-मस्तक पर होय तो कीर्ति आपे, हृदय अने नेत्रमा होय तो लान थापे, चरणमां होय तो ब्रमण करावे, गुह्यमां होय तो परस्त्री पर प्रीति आपे, अने वीजां स्थानोमां होय तो ते अशुन .
मंगळ नरनी स्थापना. १
रोग
लाल मस्तके
यश वाम करे दक्षिण करे
शोक कंठे
हिक्का हृदये
लान गुह्ये
परस्त्री रति बन्ने पगे
त्रमण
mm mrror
रोग
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