Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ प्रथमो विमर्शः॥
५१ श्रा वार उपग्रहोमांना आउनी संज्ञा तथा तेमनुं विवाहादिक कार्यमा जे फळ श्राय ते नारचंजमां आ प्रमाणे कडं .“विद्युन्मुख १ शुला २ शनि केतू । हका ५ वज्र ६ कंप ७ निर्घाताः ।। ड एज ढ १४ द १० ध १एफ २२ व २३ न २४ संख्ये रविपुरत उपग्रहा धिष्ण्ये॥१॥ फलमंगज १ पतिमरणे २ दशमदिनान्तस्तथाऽशनि निपातः३।। सानुजपति । धननाशौ ५ दौःशीट्यं ६ स्थान ७ कुलघातौ ॥२॥" “पांचमा उपग्रहy नाम विद्युन्मुख , अाउमानुं शूल नाम , चौदमार्नु अशनि, अढारमानुं केतु, ओगणीशमार्नु उस्का, बावीशमानुं वज्र, त्रेवीशमानुं कंप अने चोवीशमा उपग्रहनुं नाम निर्घात के (१). विद्युन्मुखमां विवाहादिक कार्य करवाश्री पुत्रनुं मरण थाय, शूलमां करवाथी पतिनुं मरण थाय, अशनिमां करवायी दश दिवसनी अंदर वज्रपात थाय, केतुमां करवाथी नाना ना सहित पतिनो नाश थाय, उहकामां करवाथी धननो नाश थाय, वज्रमा करवाथी सुशीलपणुं थाय, कंपमां करवायी स्थाननो नाश थाय अने निर्यातमा करवाथी कुळनो घात ( नाश) थाय."
बाकीना चार उपग्रहो सामान्य रीते अनिष्ट फळने आपनारा बे. एकाशी पद नामना वेधचक्रादिकमां पण या रीते ज उपग्रहोगें फळ जाणवू.
हवे प्रसंगोपात्त आम्ल नामनो योग कहे . तेमां अनिजित् नक्षत्र गणवानुं जे. एटले के श्रठ्यावीश नक्षत्रोनी गणतरीए जाणवो.
"6ि हया के एन्छ १४ जूपै १६ क २१ त्र्य २३ ष्टयुग्विंशति २०प्रमे ।
सूर्यलाञ्चन्मने स्यादामलस्त्याज्यः सदा बुधैः ॥१॥" "सूर्यना नत्रयी चंपनुं नक्षत्र जो बीजे, सातमे, नवमे, चौदमे, सोळमे, एकवीशमे, त्रेवीशमे के अठ्यावीशमे होय तो ते श्रामल योग कहेवाय बे. या योग शुन कार्यमां माह्या माणसे
से त्याग करवा खायक जे. "मलो यात्रासु रोधकृत" या चोथं पाद प्रत्यंतरमां बे. तेनो अर्थ ए के-“श्रा आम्ल योग यात्राने विष रोध करनार ." श्रामक्ष योग जाणवानो सहेलो उपाय नरपतिजयचर्यामां आ प्रमाणे कह्यो .
"सूर्यनाजुणयेन्दोर्न सप्तनिर्जागमाहर।
शून्यं धौ वा न शेषौ चेदाम्लो नास्ति निश्चितम् ॥ १॥" "सूर्यना नदत्रयी चंजनुं नत्र गणq. पठी तेने साते नाग खेवो. तेमां जो शून्य अथवा बे शेष न रहे तो आमल योग नथी एम निश्चे जाणवू अर्थात् जो शून्य के बे शेष रहे तो अवश्य आमत योग होय .".
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