Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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ग्रन्थ लिखा गया हो, यह ज्ञात नहीं है। वर्तमान में मरणसमाधि नाम का जो ग्रन्थ है, वह वस्ततः समाधिमरण सम्बन्धी प्राचीन आचार्यों के छः ग्रन्थों का संकलन-मात्र ही है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि समाधिमरण-सम्बन्धी जैन-साहित्य में प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
जैन धर्म में समाधिमरण लेने सम्बन्धी अनेक कथानक मिलते हैं। इन आख्यानकों में अनेक आख्यान ऐतिहासिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार, विशेष रूप से दिगम्बर-परम्परा में दक्षिण भारत में समाधिमरण लेने से सम्बन्धित अनेक अभिलेख मिलते हैं, जो समाधिमरण की प्राचीन परम्परा के पुष्ट प्रमाण हैं। इस प्रकार, समाधिमरण सम्बन्धी जो भी अभिलेखी और साहित्यिकी-प्रमाण हैं, उनसे यह सिद्ध होता है कि जैन-धर्म में समाधिमरण ग्रहण करने की परम्परा प्राचीनकाल से लेकर आज तक अनवरत रूप से चलती आ रही है। ऐसी जीवन्त परम्परा के सम्बन्ध में यदि कोई प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध हो, तो उसका महत्व अपने-आप ही सुस्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार, हम यह कह सकते हैं कि समाधिमरण-विषयक जैन-साहित्य में प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा हुआ है और आज भी यह समाधिमरण ग्रहण करने वाले साधकों के लिए एक आदर्श ग्रन्थ माना जाता है।
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