Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 207
________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 193 काली रानी की तरह सुकाली भी प्रव्रजित हुई, जो राजा श्रेणिक की रानी थी। वह भी बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर, वह सुकाली आर्या एक दिन आर्या चन्दना के पास आकर यूं बोली- "मैं कनकावली-तप कर विचरना चाहती हूँ।" आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर आर्या सुकाली ने कनकावली-तप का आराधन किया। इस तप की चारों परिपाटियों को पूरा करने में पाँच वर्ष, नौ मास और अठारह दिन लगे, अन्त में जब शरीर.सुख गया और चलने, उठने-बैठने मे भी खड़-खड़ की आवाज होने लगी, तब वह भी काली आर्या के समान एक मास की संलेखना-संथारा के साथ देह त्यागकर सिद्ध और मुक्त हो गई। इसी प्रकार, अन्तकृ त्दशा में श्रेणिक की अन्य रानियों के भी समाधिमरण के उल्लेख हैं।' सागरचन्द्र का कथानक द्वारिका नगरी में बलदेव का पुत्र निषध रहता था। उसके प्रभावती रानी से सागरचन्द्र नामक पुत्र हुआ, जो अत्यन्त रूपवान था। शांबकुमार आदि सभी के लिए वह प्रीतिपात्र था। उसी नगर के वास्तव्य एक राजा की कन्या कमलामेला बहुत सुन्दर थी। उसका वाग्दान (सगाई) महाराज उग्रसेन के पोते धनदेव. के साथ हुआ था। एक दिन नारद सागरचन्द्र के पास आए। सागरचन्द्र ने उनका स्वागत किया और आसन प्रदान कर पूछा- "भगवन! कहीं आपने कुछ आश्चर्य देखा है?" नारद बोले- "हां देखा है।" "कहाँ और कैसा आश्चर्य देखा ?" सागरचन्द्र ने पूछा। नारद बोले"यहीं, द्वारिका नगरी में कमलामेला कन्या एक आश्चर्य है।" सागरचन्द्र ने पूछा- "क्या उसका वाग्दान हो चुका है?" "हाँ", नारद ने कहा। सागरचन्द्र ने कहा- "प्रभो! उसका मेरे साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है?" "मैं नहीं जानता" ऐसा कहकर नारद ऋषि वहाँ से चले गए। सागरचन्द्र नारद का कथन सुनकर खिन्न हो गया। वह न शान्ति से बैठ सकता था और न सो सकता था। अब वह एक फलक पर कमलामेला का चित्र बनाता हुआ उसके नाम की रटन लगाने लगा। कलह का कारण खोजते हुए नारद कमलामेला के पास पहुंच गए। उसने भी पूछा- "भंते! क्या आपने कोई नया आश्चर्य देखा है?" नारद बोले- "दो आश्चर्य देखे हैं। रूप में बलदेव का पुत्र सागरचन्द्र और विरूपता में उग्रसेन का पौत्र धनदेव ।” इतना कहकर नारद वहाँ से भी चले गए। यह सुनकर कमलामेला सागरचन्द्र के प्रति मोहग्रस्त तथा धनदेव के प्रति विरक्त हो गई। उसने नारद से पूछा"क्या सागरचन्द्र मेरा पति हो सकता है?" नारद ने उसे आश्वासन दिया कि मैं तुम्हारे साथ उसका संयोग कराऊंगा। कमलामेला का चित्र पट्टिका पर बनाकर नारद सागरचन्द्र के पास गए। नारद ने सागरचन्द्र के पास जाकर कहा- "कमलामेला तुम्हें चाहती है।" तब, सागरचन्द्र की माता तथा अन्य कुमार खिन्न होकर दुःख करने लगे। इतने में ही शांब आया और उसने सागरचन्द्र को विलाप करते हुए देखा। तब, शांब ने उसके पीछे जाकर उसकी दोनों आंखें अपनी हथेलियों से ढंक दी। सागरचन्द्र बोला- "कमलामेला"। शांब ने कहा-"मैं कमलामेला नहीं, कमलामेल हूँ।" सागरचन्द्र बोला- "अब तुम ही विमलकमल नेत्रों वाली कमलामेला से मिलाओगे, क्योंकि महापुरुष सत्यप्रतिज्ञ होते हैं।' तब अन्य कुमारों ने शांब को मद्य पिलाया। जब वह मदिरा 'काली-सुकालियाओ घन्ना कालाइयाण जणणीओ। सुयमरण गहियचरणा अणसणमरणा गया सिद्धि ? आराधनापताका - गाथा -814 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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