Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ 216 रूप में मिलते हैं, इसकी तुलनात्मक - दृष्टि से चर्चा की है, साथ ही समाधिमरण सम्बन्धी आगम और आगमेतर ग्रन्थों में प्रस्तुत प्राचीन आचार्य विरचित आराधना-पताका की गाथाएं किस रूप में समान हैं, इसे भी स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार द्वितीय अध्याय का यह खण्ड गाथाओं के तुलनात्मक-अध्ययन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बन गया है और इससे आराधना - पताका के पूर्वापरत्व का भी कुछ आभास हो जाता है। इस तुलना में हमने विशेष रूप से यह देखने का प्रयत्न किया है कि कौनसा ग्रन्थ प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका से पूर्ववर्ती है और कौनसा ग्रन्थ परवर्ती है । इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझने के लिए जिन ग्रन्थों को प्राचीनाचार्यकृत आराधना - पताका से पूर्ववर्ती माना गया है, उनकी गाथायें पहले देकर फिर उसके नीचे आराधना-पताका की गाथाएं दी हैं। इसी प्रकार, जिन ग्रन्थों को हमने आराधना - पताका से परवर्ती माना है, उसमें यह ग्रन्थक्रम उलटकर पहले प्राचीनाचार्यकृत आराधना - पताका की गाथाएं दी गई हैं और उसके बाद उस ग्रन्थ की गाथाएं दी गई है। इस प्रकार, हमने तुलनात्मक दृष्टि से समाधिमरण सम्बन्धी ग्रन्थों के पूर्वापरत्व की चर्चा भी स्पष्ट कर दी है। साध्वी डॉ. प्रतिभा इसी द्वितीय अध्याय के द्वितीय खण्ड में समाधिमरण- विषयक ग्रन्थों में प्राचीनाचार्यकृत इस आराधनापताका का क्या स्थान है और इसका क्या महत्व है, इसे भी संक्षेप मे दिखाने का प्रयत्न किया गया है। जैसा कि हमने पूर्व में भी कहा है, समाधिमरण - विषयक ग्रन्थों में प्राचीनाचार्यविरचित आराधना - पताका ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो समाधिमरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया का क्रमपूर्वक विवेचन करता है। इस चर्चा में हमने समाधिमरण- विषयक ग्रन्थों प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रन्थ आराधनापताका का क्या महत्व है इसे भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का तृतीय अध्याय मुख्यरूप से प्राचीनाचार्य - विरचित आराधना - पताका तथा अचेल परम्परा में तत्सम्बन्धी गन्थ 'भगवती - आराधना' का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है । इस अध्याय में ग्रन्थ के नामकरण, अन्तिम प्रशस्ति आदि पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। आराधना - पताका का एक नाम पर्यन्ताराधना और दूसरा नाम आराधना - भगवती भी मिलता है और इससे यह सिद्ध होता है कि भगवती आराधना और प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका अपर नाम आराधना - भगवती में नाम साम्य विशेष महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार, इस अध्याय में दोनों ग्रन्थों की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में भी विचार किया गया है। इस सम्बन्ध में हमने यह पाया है कि जहाँ भगवती - आराधना में सम्यक्चारित्र के साथ-साथ सम्यक्दर्शन और ज्ञान की भी विस्तृत चर्चा है, वहाँ आराधना - पताका में ऐसी कोई चर्चा नहीं है। आराधनापताका मात्र समाधिमरण की चर्चा करती है। दूसरे, जहाँ आराधनापताका में ग्रन्थ की विषय-वस्तु को बत्तीस द्वारों और कुछ को प्रतिद्वारों में विभक्त किया गया है, वहीं भगवतीआराधना में इस प्रकार द्वारों का विभाजन नहीं हुआ है। इसी सन्दर्भ में यह देखने का प्रयत्न किया है कि आराधनापताका की अपेक्षा भगवती आराधना की गाथा - संख्या दुगुनी है। जहाँ आराधनापताका में 932 गाथाएं है, वहाँ भगवती - आराधना में 2164 गाथाएं हैं। इस प्रकार दोनों ग्रन्थों में आकार को लेकर भिन्नता है । इसी अध्याय में दोनों ग्रन्थों की विषय-वस्तु की चर्चा के आधार पर हमने उनके कालक्रम के निर्धारण का भी प्रयत्न किया है। विशेष रूप से यह दिखाया है कि जहाँ भगवतीआराधना के अन्त में साधक के आध्यात्मिक - विकास की दृष्टि से गुणस्थानों की भी संक्षिप्त चर्चा है, वहाँ आराधनापताका में गुणस्थानों की किसी भी प्रकार की चर्चा का निर्देश नहीं है और इसी आधार पर हमने डॉ. सागरमल जैन के उस मन्तव्य को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242