Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
अध्याय - 3 आराधनापताका का गाथागत श्वेताम्बर-ग्रन्थों से
तुलनात्मक-विवेचन जहां तक श्वेताम्बर-परम्परा का प्रश्न है, प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका की अनेक गाथाएं मरणविभक्ति, संस्तारक-प्रकीर्णक, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, चन्द्रवेध्यक, आवश्यकनियुक्ति, ओघनियुक्ति आदि में भी उपलब्ध होती हैं। न केवल प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका की गाथाएं उसके पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध होती हैं, किन्तु उसके परवर्ती ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती हैं, यथाहरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण, निशीथभाष्य, आराधनाप्रकरण, वीरभद्रकृत आराधनापताका तथा प्रवचनसारोद्धार में भी कुछ गाथाएं यथावत् पाई जाती हैं। कहीं-कहीं कुछ आंशिक शाब्दिक भेद के
थ पाई जाती हैं। यद्यपि प्राचीनाचार्यकत आराधनापताका के परवर्ती ग्रन्थों में वीरभद्रकत आराधनापताका में सर्वाधिक गाथाएं समान या किंचित् शब्दभेद के साथ मिलती हैं, उसके बाद प्रवचनसाराद्धार, जो कि लगभग तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी का ग्रन्थ है, उसमें भी पाई जाती हैं। यहां हम इस सम्बन्ध में विशेष चर्चा न करते हुए मात्र, वे तुलनात्मक गाथाएं किस ग्रन्थ में किस रूप में उपलब्ध हैं, इसे पूर्व उल्लेखित ग्रन्थों के क्रम के आधार पर ही प्रस्तुत कर रहे हैं
मरणविभक्ति और आराधनापताका (1) संलेहणा य दुविहा अभिंतरिया 1 य वाहिरा 2 चेव । अभिंतरिय कसाए1, बाहिरिया होइ य सरीरे 2 ।।
(मरणविभक्ति-प्रकीर्णक, गाथा 176 ) संलेहणा उ दुविहा अभिंतरिया 1 य बाहिरा 2 चेव । अभिंतरा कसाएसु, बाहिरा होई हु सरीरे ||
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका ,गाथा 08) कोइं खमाइ, माणं मद्दवया अज्जवेण मायं च । संतोसेण य लोभं निज्जिण चत्तारि वि कसाए।।
(मरणविभक्ति-प्रकीर्णक, गाथा 189) कोई खमाए, माणं मद्दवया अज्जवेण मायं च । संतोसेण य लोहं जिणइ हु चत्तारि वि कसाए।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 17)
'नोट - तुलना में आराधनापताका से प्राचीन ग्रन्थों की गाथा प्रथम और आराधनापताका की गाथा बाद में ही है, जबकि उससे परवर्ती ग्रन्थों में आराधनापताका की गाथा प्रथम दी गई है। 2. इस तुलनात्मक अध्ययन में डॉ. सागरमल जैन का विशेश सहयोग रहा है ।
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