Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 161 या महापथ-यात्रा में व्यक्ति को आग में जलकर, जल में डूबकर, पहाड़ या ऊँचाई से कूदकर प्राणत्याग करना चाहिए।' प्रसिद्ध गुप्तकालीन ग्रन्थ मृच्छकटिकम् एवं रघुवंश में भी आत्मा का समर्थन किया गया है। मृच्छकटिकम् के अनुसार राजा शुद्रक ने अग्नि-प्रवेश करके इच्छापूर्वक आत्ममरण किया था। रघुवंश में अज के आत्ममरण का विवरण काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ के अनुसार आज जब वृद्ध हो गए और असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो गए तब उन्होंने सरयू की पवित्र जलधारा में जलसमाधि लेकर आत्ममरण ग्रहण किया। कुमारगुप्त ई. सन् 414 में गुप्त साम्राज्य के राजा बने। इन्होंने भी अग्नि प्रवेश करके इच्छापूर्वक मृत्यु को ग्रहण किया था। आठवीं सदी के महान् दार्शनिक कुमारिल ने भी अग्निप्रवेश करके इच्छापूर्वक मृत्युवरण किया था। दसवीं या ग्यारहवी सदी में काबुल और लाहौर के राजा जयपाल थे। उन्होंने भी अग्नि करके इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था। दसवीं सदी में राजा गांगेय ने अपनी 100 पत्नियों के साथ प्रयाग में जल समाधि लेकर इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था। जब घगंदेव की उम्र सौ साल से अधिक हो गई तब वे प्रयाग चले आए थे और यहाँ संगम की जलधारा में रुद्र का ध्यान रते हुए जलसमाधि ले ली। चन्देल राजा धंगदेव के मन्त्री अनन्त ने भी प्रयाग में इच्छित-मरण किया था। इसी प्रकार राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने प्रयाग में गंगा यमुना के संगम स्थल पर इच्छित-मरण किया था। चालुक्य नरेश अमाभल्ल सोमेश्वर ने भी असाध्य रोग से पीड़ित होने पर तुंगभद्रा नदी की जलधारा में डूबकर इच्छित-मरण किया था। इस प्रकार हम देखते है कि ब्राह्मण या हिन्दू परम्परा के ग्रन्थों में इच्छापूर्वक देहत्याग करने के कई उदाहरण मिलते है। किन्तु यहाँ इच्छित देहत्याग करने के लिए व्यक्ति मुख्य रूप से बाह्य साधनों का उपयोग करता है, जो निम्नलिखित हैं। 1 तीर्थप्रकाश (वीरमित्रोदया), पृ. 242-48, 342, 346, 372-73, तीर्थस्थली सेतु, पृ. 290-316 तीर्थविवेचन कांडम, अध्याय 24, पृ. 258 मृच्छकटिक, 1/4 'सम्यग्निनीतमय वर्महरं कुमारमादिश्य रक्षणविघौ विधिवत्प्रजानाम् । रोगोपसृष्टतनुदुर्वसतिं मुमुक्षुः प्रायोपवेशनमर्तिमृपतिर्वभूव ।। रघुवंश, 8/94 उद्धत The History of in India p. 96 * शौर्यसत्यव्रत घरो यः प्रयगगतो घने। अम्भस्त्रीव करीषाग्नौ मग्नः स पुष्पपूजितः ।। वही पृ. 96 ' श्रुत्यर्थ धर्म विमुखां सुगतां निरन्तुम्। जातम् गुहम् भुवि भवन्तमहैन्न जानः ।। वहीं पृ. 91 6 तीर्थविवेचन कांडम् पृ. 259 उघृत वही. पृ. 96 ' Epigraphic a of Indica Xll p- 211 Ibid P-137 Year - 55 " bid P-200-201 Year-29 10 India antiquities XII page 159 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242