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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 39 ग्रन्थ लिखा गया हो, यह ज्ञात नहीं है। वर्तमान में मरणसमाधि नाम का जो ग्रन्थ है, वह वस्ततः समाधिमरण सम्बन्धी प्राचीन आचार्यों के छः ग्रन्थों का संकलन-मात्र ही है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि समाधिमरण-सम्बन्धी जैन-साहित्य में प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका का एक महत्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में समाधिमरण लेने सम्बन्धी अनेक कथानक मिलते हैं। इन आख्यानकों में अनेक आख्यान ऐतिहासिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार, विशेष रूप से दिगम्बर-परम्परा में दक्षिण भारत में समाधिमरण लेने से सम्बन्धित अनेक अभिलेख मिलते हैं, जो समाधिमरण की प्राचीन परम्परा के पुष्ट प्रमाण हैं। इस प्रकार, समाधिमरण सम्बन्धी जो भी अभिलेखी और साहित्यिकी-प्रमाण हैं, उनसे यह सिद्ध होता है कि जैन-धर्म में समाधिमरण ग्रहण करने की परम्परा प्राचीनकाल से लेकर आज तक अनवरत रूप से चलती आ रही है। ऐसी जीवन्त परम्परा के सम्बन्ध में यदि कोई प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध हो, तो उसका महत्व अपने-आप ही सुस्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार, हम यह कह सकते हैं कि समाधिमरण-विषयक जैन-साहित्य में प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा हुआ है और आज भी यह समाधिमरण ग्रहण करने वाले साधकों के लिए एक आदर्श ग्रन्थ माना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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