Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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समाधिमरणों का उल्लेख किया गया है, वहीं साधक की पात्रता तथा अन्तिम आराधना के पूर्व की तैयारी का वर्णन भी किया गया है। तीसरे अध्याय में समाधिमरण का व्रत लेने से पूर्व सभी प्रकार के पापाचार से विरत होने, समाधिमरण का व्रत लेने का निश्चय करने तथा मृत्युपर्यन्त सभी प्रकार के आहार एवं उपधि का त्याग करने का निश्चय करने के बारे में बताया गया है। इसी अध्याय में समाधिमरण की प्रशंसा करते हुए उसकी निरतिचार आराधना का उल्लेख किया गया है। पांचवे अध्याय में विभिन्न प्रकार के अनशनों का भी वर्णन किया गया है।
भगवती-आराधना-अचेल यापनीय-परम्परा के आचार्य शिवार्यविरचित भगवती-आराधना नामक इस ग्रन्थ में विभिन्न प्रकार के मरणों तथा समाधिमरण की आराधना का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट संलेखना समाधिमरण की साधना का वर्णन भी मिलता है। भगवती-आराधना को मूलाराधना भी कहा जाता है। इसमें कुल गाथाओं की संख्या 2164 है। समाधिमरण पर लिखा गया यह सबसे बड़ा ग्रन्थ है। इसमें समाधिमरण के स्वरूप और उसकी समग्र विधि की विस्तृत चर्चा है। इसमें अन्तिम आराधना तथा मरण के विभिन्न प्रकारों की चर्चा है, साथ ही समाधिमरण के तीन भेदों- भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण तथा प्रायोपगमनमरण की चर्चा
है। इसके अतिरिक्त, बारह अनुप्रेक्षा तथा समाधिमरण लेने वाले व्यक्तियों के कथानकों का निर्देश भी मिलता है।
तत्त्वार्थसत्र और उसकी दिगम्बर-टीकाएं- वाचक उमास्वाति-प्रणीत तत्त्वार्थसूत्र के सातवें अध्याय में गृहस्थ-आराधकों के लिए भी आमरण अनशन के रूप में अन्तिम आराधना का उल्लेख मिलता है। इसी अध्याय के बत्तीसवें सूत्र में मरणान्तिक-संलेखना के निम्न पांच अतिचारों का उल्लेख मिलता है
1. जीवितासंसा - जीने की इच्छा
मरणासंसा - मरने की इच्छा 3. मित्रानुराग- सांसारिक सम्बन्धियों के प्रति अनुराग। 4. सुखानुबन्ध- सांसारिक भोगों के प्रति आसक्ति।
5. निदानकरण-इसी आराधना के फलस्वरूप जन्मान्तर में किसी विशेष उपलब्धि प्राप्त करने का संकल्प करना।
इसी ग्रन्थ के नौवें अध्याय में काल-विशेष के लिए, अर्थात् इत्वरिक तथा मृत्युपर्यन्त (आमरण) आहार-त्याग (अनशन) को प्रथम बाह्यतप के रूप में परिभाषित किया गया है।
दिगम्बर-आचार्यों ने तत्त्वार्थसूत्र के उपर्युक्त सूत्रों की व्याख्याओं में भी इस पर गहन विचार किया है, किन्तु विस्तार-भय से उनका उल्लेख यहां नहीं कर पा रहे हैं।
रत्नकरण्डक श्रावकाचार-आचार्य समन्तभद्र-प्रणीत इस ग्रन्थ के संलेखना अधिकार' नामक छठवें अध्याय में श्रावक-श्राविकाओं द्वारा संलेखना और समाधिमरण की आराधना की चर्चा की गई है। इस अध्याय में शास्त्रकार ने इस अन्तिम आराधना की आवश्यकता क्यों है ? इसके लिए उचित समय क्या है ? तथा इसकी आराधना-विधि क्या है ? इसकी चर्चा की है, साथ ही
'भगवती-आराधना - सम्पादक- पण्डित कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री - फलटण - ई. सन् 1990 (समग्र ग्रन्थ)
तत्त्वार्थसूत्र-7/17 'जीवितमरणाशंसामित्रानुराग - सुखानुबंध निदान करणानि - तत्वार्थसूत्र - अध्ययन-7-32
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