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रात-दिन लोगों की लक्ष्मी के प्रति की भक्ति पर 'ज्ञानीपुरुष' आघात करते हुए बताते हैं कि
‘तो फिर महावीर की भजना बंद हो गई और यह भजना शुरू हो गई, ऐसा न ? मनुष्य एक जगह पर भजना कर सकता है या तो पैसों की भजना कर सकता है या फिर आत्मा की। एक व्यक्ति का उपयोग दो जगहों पर नहीं रह सकता। दो जगहों पर उपयोग कैसे रह सकता है ?"
दादाश्री
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। पूरी जिंदगी भगवान को भूलकर लक्ष्मी के पीछे पड़कर दौड़ा, गिरा, ठोकरें खाईं, घुटने छिल गए, फिर भी दौड़ जारी रखी, लेकिन अंत में मिला क्या? क्या पैसे साथ में ले जा सके? लक्ष्मी साथ में ले जा सकते, तब तो सेठ तीन लाख का कर्ज़ा करके भी साथ में ले जाते और पीछे से बच्चे चुकाते रहते! ऐसा अद्भुत उदाहरण देकर 'ज्ञानीपुरुष' लक्ष्मी के पुजारियों को ज़बरदस्त स्वराघात करते हैं! इस उदाहरण का वर्णन करते हुए सेठ की रूपरेखा, उनकी डिज़ाइन, उनके मन की कंजूसी, उन सबका वर्णन शब्दों द्वारा करते हैं, लेकिन सुननेवाले-पढ़नेवाले के लिए हूबहू चित्रपट सर्जित कर देते हैं ! 'ज्ञानीपुरुष' की यह ग़ज़ब की खूबी है, जो मन का ही नहीं लेकिन सामनेवाले के चित्त का भी हरण कर लेती है !
लक्ष्मी के पीछे रात-दिन मेहनत करनेवालों को 'ज्ञानीपुरुष' एक ही वाक्य में निरस्त कर देते हैं कि...
'लक्ष्मी जी तो पुण्यशालियों के पीछे घूमती रहती हैं और मेहनती लोग लक्ष्मी जी के पीछे घूमते हैं !' - दादाश्री
अर्थात् सच्चा पुण्यशाली किसे कहा है? कि जो थोड़ी सी मेहनत करे और ढेर सारा पैसा मिले !
‘जो भोगे, वह समझदार कहलाता है, बाहर फेंक देता है वह पागल कहलाता है और मेहनत करता रहे वह तो मज़दूर कहलाता है । ' - दादाश्री
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