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(1) जब राम हर्ष से निकला (तो) भरत राजा के द्वारा प्रणाम करके कहा गया- (2) हे देव! मैं भी तुम्हारे साथ संन्यास लूँगा । दुर्गति देनेवाले राज्य को नहीं भोगूँगा । ( 3 ) राज्य असार ( है ), संसार का द्वार ( है ), राज्य क्षणभर में विनाश को पहुँचा देता है। (4) राज्य इस (लोक में ) और परलोक में दुःख - जनक ( होता है ) । ( मनुष्य के द्वारा ) राज्य से नित्य - निगोद के लिए जाया जाता है । (5) राज्य के द्वारा मधु के समान रुचिकर हुआ गया ( है ) तो ( यह ऐसा ) होवे । ( किन्तु ) (फिर) तुम्हारे द्वारा ( राज्य ) क्यों छोड़ दिया गया ? ( 6 ) निर्मल मुनियों द्वारा राज्य नहीं करने योग्य कहा गया ( है ) ( वह) अनेक के द्वारा अनुभव किया गया ( है ) जैसे दुष्ट स्त्री ( अनेक ) ( पुरुषों द्वारा ) | ( 7 ) ( वह राज्य ) दोषवाला (होता है) जैसे चन्द्रमा का बिम्ब, (वह) बहुत दुःखों से पीड़ित (होता है) जैसे दरिद्र कुटुम्ब । ( 8 ) ( आश्चर्य है कि) तो भी जीव राज्य की / के लिए इच्छा करता है । प्रतिदिन गलती हुई आयु को नहीं देखता है।
24.3
घत्ता
जिस प्रकार जल की बूँद के प्रयोजन से ऊँट कंकर को नहीं देखता है, उसी प्रकार विषय में आसक्त जीव ने राज्य से अत्यधिक आदर-सत्कार पाया है (इसलिये ) ( वह) ( उससे प्राप्त दुःखों को नहीं देखता है ) ।
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24.4
(1) राजा के द्वारा बोलता हुआ भरत रोका गया । ( राजा ने कहा ) आज ही तेरे लिए तप की बात से क्या (लाभ) ? (2) आज ही राज्य कर ( और उसके ) सुख का अनुभव कर । आज ही विषयसुख को भोग । ( 3 ) आज ही तू पान का उपभोग कर। आज ही (तू) श्रेष्ठ उद्यानों को मान । (4) आज ही (तू) शरीर को स्व-इच्छा से सजा (और) आज ही श्रेष्ठ स्त्रियों का आलिंगन कर । (5) आज भी (तू) सभी अलंकार के योग्य ( है ) । आज ही तप के आचरण का कौनसा समय ( है ) ? ( 6 ) जिन - प्रव्रज्या बहुत असह्य होती है । किसके द्वारा बाईस परीषह सहन किए गए ( हैं ) ? (7) किसके द्वारा दुर्जेय चारों कषायोंरूपी शत्रु जीते गये ( हैं ), किसके द्वारा पंच महाव्रत ग्रहण किए गए ( हैं ) ? (8) किसके द्वारा पाँचों विषयों का
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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