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द्वारा अनुभव किया गया (है) जैसे दुष्ट स्त्री (अनेक) (पुरुषों द्वारा)। [7] (वह राज्य) दोषवाला (होता है) जैसे चन्द्रमा का बिम्ब, (वह) बहुत दुःखों से पीड़ित (होता है) जैसे दरिद्र कुटुम्ब । [8] (आश्चर्य है कि) तो भी जीव राज्य की/के लिए इच्छा करता है। प्रतिदिन गलती हुई आयु को नहीं देखता है।
घत्ता-जिस प्रकार जल की बूंद के प्रयोजन से ऊँट कंकर को नहीं देखता है, उसी प्रकार विषय में आसक्त जीव ने राज्य से अत्यधिक प्रादर-सत्कार पाया है (इसलिए) (वह) (उससे प्राप्त दुःखों को नहीं देखता है)।
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[1] राजा के द्वारा बोलता हुआ भरत रोका गया। (राजा ने कहा) आज ही तेरे लिए तप की बात से क्या (लाम) ? [2] आज ही राज्य कर (और उसके) सुख का अनुभव कर। आज ही विषय-सुख को भोग । [3] प्राज ही तू पान का उपभोग कर। आज ही (तू) श्रेष्ठ उद्यानों को मान । [4] आज ही (तू) शरीर को स्व-इच्छा से सजा (और) आज ही श्रेष्ठ स्त्रियों का आलिंगन कर। [5] आज भी (तू) सभी अलंकार के योग्य (है)। आज ही तप के आचरण का कौनसा समय (है)? [6] जिन-प्रव्रज्या बहुत असह्य होती है । किसके द्वारा बाईस परीषह सहन किए गए (हैं) ? [7] किसके द्वारा दुर्जेय चारों कषायोंरूपी शत्रु जीते गये (हैं), किसके द्वारा पंच महाव्रत ग्रहण किए गए (हैं) ? [8] किसके द्वारा पांचों विषयों का निग्रह किया गया (है) ? किसके द्वारा सकल परिग्रह समाप्त किया गया (है) ? [9] कौन वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे बसा (है)? कौन शीतकाल में केवलमात्र शरीर से रहा (है) ? [10] किसके द्वारा ग्रीष्मकाल में शरीर का तपन किया गया (है) ? यह तप का आचरण भीषण होता है ।
घत्ता हे भरत ! तू बढ़कर मत बोल । (तू) आज भी वह (ही) बालक (है)। विषय-सुखों को भोग । (यह) प्रव्रज्या का कौनसा काल (है) ?
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[1] उसको सुनकर भरत क्रुद्ध (रुष्ट) हुमा । मस्त हाथी की तरह चित्त में दुःखी हुआ । [2] (भरत ने कहा कि हे पिता) तब आपके द्वारा प्रतिकूल (विरोधी) वचन कहे गए। क्या बालक के लिए तप का आचरण उचित (युक्त) नहीं है ? [3] क्या बालपन सुखों के द्वारा नहीं ठगा जाता है ? क्या बालक के लिए दया एवं धर्म रुचिकर नहीं होता है ? [4] क्या बालक के लिए प्रव्रज्या नहीं हुई ? क्या बालक का परलोक दूषित (नहीं)
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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