Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 390
________________ शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगवारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 368 // द्रव्यादिचतुर्भेदाः सङ्ख्यांनोपैति / यत एकस्मिन् घटादौ दृष्टे घटादि वस्त्विदं तिष्ठतीत्येवमेव प्रायः प्रतीतिरुत्पद्यते, नैकसङ्ख्याविषयत्वेन / [[1] उपक्रमः। अथवा, आदानसमर्पणादिव्यवहारकाल एकं वस्तु प्रायोन कश्चिद्गणयत्यतोऽसंव्यवहार्यत्वादल्पत्वाद्वा नैको गणनसङ्ख्याम 1.3 प्रमाणम्। वतरति / तस्मादिप्रभृतिरेव गणनसङ्ख्या।साच सङ्खयेयकादिभेदभिन्ना, तद्यथा, सङ्खयेयकमसङ्खयेयकमनन्तकम्॥४९७॥ तत्र सङ्खयेयकं जघन्यादिभेदात्रिविधम् // 498 // असङ्खयेयकं तु परीतासङ्खयेयकम्, युक्तासङ्खयेयकम्, असङ्ख्येया- सूत्रम् 508 सङ्खयेयकम् // 499 // पुनरेकैकं जघन्यादिभेदात्त्रिविधमिति सर्वमपि नवविधम्॥ 502 // अनन्तकमपि परीतानन्तकं युक्तानन्तकमनन्तानन्तकम् // 503 // अत्राद्यभेदद्वये जघन्यादिभेदात्प्रत्येकं त्रिविधम् // 504-505 // अनन्तानन्तकं तु जघन्यमजघन्योत्कृष्टमेव संभवतीति / उत्कृष्टानन्तानन्तकस्य क्वाप्यसम्भवादिति सर्वमपीदमष्टविधम् // 506 // तदेवं संक्षेपतः सङ्घयेयकादिभेदप्ररूपणामात्रं कृत्वा विस्तरतः तत्स्वरूपनिरूपणार्थमाह- जहण्णय संखेज्जयं केत्तियमित्यादि। तत्र जघन्यं / सङ्गयेयकं द्वौ, ततः परं त्रिचतुरादिकं सर्वमजघन्योत्कृष्टं यावदुत्कृष्टं न प्राप्नोति // 507 // ___ उक्कोसयंसंखेज्जयं केत्तिय होइ?, उक्कोसयस्स खेज्जयस्स परूवणं करिस्सामि, से जहानामए पल्ले सिया, एगंजोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसते तिण्णि य कोसे अट्ठावीसंच धणुसतं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलयं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते / से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। ततो णं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीवसमुद्दाणं उद्धार घेप्पति, एगे दीवे एगे समुद्दे 2 एवं पक्खिप्पमाणेहि जावइयाणं दीवसमुद्दा तेहिं सिद्धत्थएहिं अप्फुण्णा एस णं एवतिएखेत्ते पल्ले आइ8 / से ण पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। ततोणं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीवसमुद्दाणं उद्धारे घेप्पति, 0..द्यानन्तभेदद्वये। केवइयं ।..मप्य.. यं। अद्धंअंगुलं। रो। लगा। (आइटा)। (r) से णं..खेत्ते पल्ले' इत्यादिनि पदानि न सन्ति। / 1.3.4 भावप्रमाणम्। 1.3.4.1 गुण प्र०॥ 1.3.4.1.3 सङ्ख्याभावप्रमाणम्। अष्टानां मध्ये 1.3.4.1.3.7 गणनासङ्ख्या भा०प्र०। उत्कृष्टसहयात सहयाभावप्रमाणम्। // 368 //

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