Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ [2] निक्षेपः। श्रीअनुयोगद्वारं मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 399 // सूत्रम् 586 // से किं तं जाणयसरीर भवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा?, 2 जहा जाणयसरीरभवियसरीरइरित्तेदव्वाए तहा भाणियव्वा, से तं जाणयसरीर भवियसरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा, सेतं नोआगमओ दव्वज्झवणा, से तंदव्वज्झवणा // सूत्रम् 587 // से किंतंभावज्झवणा?,२ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा- आगमतो य णोआगमतो य ।सूत्रम् 588 // से किंतं आगमओ भावज्झवणा?,२ झवणापयत्थाहिकार जाणए उवउत्ते, सेतं आगमतो भावज्झवणा // सूत्रम् 589 // से किंतंणोआगमतो भावज्ावणा?,२ दुविहा पण्णत्ता? तंजहा- पसत्था य अपसत्था य॥सूत्रम् 590 / / से किंतं पसत्था?,२चउव्विहा पण्णत्ता? तंजहा-कोहज्झवणा माणज्झवणा मायज्झवणा लोभज्झवणा? सेतं पसत्था॥ सूत्रम् 591 // से किं तं अपसत्था? तिविहा पण्णत्ता? तंजहा- नाणज्झवणा दंसणज्झवणा चरित्तज्झवणा? से तं अपसत्था। से तं नोआगमओ भावज्झवणा, से तंभावज्झवणा, से तंझवणा, सेतं ओहनिप्फण्णे॥सूत्रम् 592 / / से किं तं झवणा, इत्यादि। क्षपणापचयो निर्जरेति पर्यायाः। शेषं सूत्रसिद्धमेव, यावदोघनिष्पन्नो निक्षेपः समाप्तः / सर्वत्र चेह भावे विचार्येऽध्ययनमेव योजनीयम्॥५८०-९२॥अथ नामनिष्पन्ननिक्षेपमाह सेकिंतंनामनिप्फण्णे?, 2 सामाइए।सेसमासओचउब्विहे पं०, तं०- णामसामाइए ठवणासामाइए दव्वसामाइए भावसामाइए॥ सूत्रम् 593 // ७'जाव से तं मीसिआ, सेतं लोगुत्तरिआ', इत्यधिकम् / ॐ पसत्था तिविहा अपसत्था चउब्विहा' इत्याद्यनुसारेण व्यत्ययेन पाठो दर्शितः। 0 वा। सूत्रम् 580-592 2.1 ओघ, 2.2 नाम, २.३सूत्रालापक निष्पन्नभेदाः। 2.1 ओघनिष्पन्ने 'झवणा' पदस्य नामादि चतुर्निक्षेपाः। सूत्रम् 593-599 2.2 नामनिष्पन्ननिक्षेपः। नामादिभेदैः सामायिकनामनिक्षेपणम् / // 399 //

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