Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 420
________________ सूत्रम् श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरिवृत्तियुतम्। // 398 // उज्जालंकियाणं त्ति आ(समा) भरितानां सुवर्णसङ्कलिकादिभूषितानामातोद्यैर्झल्लरीप्रमुखैरलङ्कतानाम् // 558-79 // अथ [2] निक्षेपः। क्षपणानिक्षेपं विवक्षुराहसे किंतं झवणा?, 2 चउव्विहा पण्णत्ता, तंजहा- नामज्झवणा ठवणज्झवणा दव्वज्झवणा भावज्झवणा॥ सूत्रम् 580 // 8 580-592 2.1 ओघ, नामठवणाओ पुव्व भणियाओ। सूत्रम् 581 // 2.2 नाम, से किंतंदव्वज्झवणा?, 2 दुविहा पण्णत्ता, तंजहा- आगमतो य नोआगमतो य॥सूत्रम् 582 // 8२.३सूत्रालापक 8 निष्पन्नभेदाः। से किं तं आगमतो दव्वज्झवणा?, 2 जस्स णं झवणेति पदं सिक्खियं ठितं जितं मितं परिजियं सेसं जहा दव्वज्झयणे तहा 2.1 ओघ निष्पन्ने भाणियव्वं, जाव से तं आगमतो दव्वज्झवणा ॥सूत्रम् 583 // 'झवणा' पदस्य से किंतंनोआगमतो दव्वज्झवणा? २तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-जाणयसरीरदव्वज्झवणा भवियसरीरदव्वज्झवणा जाणयसरीर नामादि चतुर्निक्षेपाः। भविय सरीरवइरित्ता दव्वज्झवणा // सूत्रम् 584 // से किंतं जाणय०? 2 झवणापयत्थाहिकारजाणयस्स जसरीरयं ववगयचुय चइय चत्तदेहं, सेसंजहा दव्वज्झयणे, जाव से तं जाणयसरीरदव्वज्झवणा // सूत्रम् 585 // से किंतं भवि० दव्व०?, 2 जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते आयत्तएणं जिणदिटेणं भावेणंज्झवण त्ति पयंसेय काले सिक्खिस्सति, ण ताव सिक्खड़ को दिटुंतो? जहा अयं घयकुंभे भविस्सति अयं महुकुंभे भविस्सति से तं भवियसरीरदव्वज्झवणा॥ // 398 // व्वं। 0 पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजिअंजाव से तं- इति वर्तते। लगा। 'चुअ०' इति संक्षिप्तः पाठः। 7 आयत्तएणं .... महुकुंभे भविस्सति' इत्यादि पाठो न वर्तते तत्स्थाने 'सेसं जहादव्वज्झयणे, जाव', इति पाठो वर्तते। 0 88888888888888888888888888

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