Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

View full book text
Previous | Next

Page 422
________________ [[2] निक्षेपः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 400 // सूत्रम् 593-599 2.2 नामनिष्पन्ननिक्षेपः। नामादिभेदैः सामायिकनामनिक्षेपणम्। णाम ठवणाओ पुव्वभणियाओ॥सूत्रम् 594 // दव्वसामाइए वि तहेव, जाव सेतं भवियसरीरदव्वसामाइए॥सूत्रम् 595 // से किंतंजाणयसरीर भवियसरीरवइरित्तेदव्वसामाइए? 2 पत्तयपोत्थय लिहियं, सेतंजाणयसरीर भवियसरीर वइरित्तेदव्वसामाइए से तंणोआगमतो दव्वसामाइए, सेतंदव्वसामाइए।सूत्रम् 596 // से किंतं भावसामाइए?, 2 दुविहे पं० तं०- आगमतो य नोआगमतो य ।सूत्रम् 597 // सेकिंतं आगमतो भावसामाइए?, 2 भावसामाइय पयत्थाहिकार जाणए उवउत्ते, सेतं आगमतो भावसामाइए।सूत्रम् 598 // से किंतंनोआगमतो भावसामाइए?,२, जस्ससामाणिओ अप्पा, संजमेणियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं॥ १२७॥जोसमोसव्वभूएसु, तसेसु थावरेसुयं / तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं // 128 ॥जह ममण पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं / न हणइ न हणावेइ य सममणती तेण सो समणो॥१२९॥णत्थि य से कोइ वेसो पिओ असव्वेसु चेव जीवेसु / एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ॥१३०॥ उरग गिरिजलण सागर नहतल तरुगणसमो य जो होइ / भमर मिग धरणि जलरुह रविपवणसमो य सो समणो॥१३१॥ ता समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण होइ पावमणो। सयणे यजणे य समो, समोय माणाऽवमाणेसु॥१३२॥से तं नोआगमतो भावसामाइए, से तंभावसामाइए, से तं सामाइए, सेतं नामनिप्फण्णे॥ सूत्रम् 599 // से किं तं नामनिप्फन्ने, इत्यादि। इहाध्ययनाक्षीणाद्यपेक्षया सामायिकमिति वैशेषिकं नाम / इदंचोपलक्षणं चतुर्विंशतिस्तOव्वं / इमे द्वे पदे न वर्तेते। 0 सि। व। // 400 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450