Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text
________________ श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्ति युतम्। // 394 // से किं तं आगमतो दव्वज्झीणे?, 2 जस्स णं अज्झीणे त्तिपदं सिक्खितं जितं मितं परिजितं तं चेव जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव सेतं आगमतो दव्वज्झीणे ॥सूत्रम् 550 // से किंतं नोआगमतो दव्वज्झीणे?,२तिविहे पण्णत्ते, तंजहा- जाणयसरीरदव्वज्झीणे भवियसरीरदव्वज्झीणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तेदव्वज्झीणे ॥सूत्रम् 551 // से किं तं जाणयसरीरदव्वझीणे?, 2 अज्झीणपयत्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुत चइत चत्तदेहं जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियव्वं, जाव से तंजाणयसरीरदव्वज्झीणे॥सूत्रमू५५२॥ से किं तं भवियसरीरदव्वज्झीणे?, 2 जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते जहा दव्वज्झयणे, जाव से तं भवियसरीदव्वज्झीणे // सूत्रम् 553 // से किंतं जाणयसरीर भवियसरीरवइरित्तेदव्वज्झीणे?,२ सव्वागाससेढी।सेतंजाणयसरीर भवियसरीरवइरित्तेदव्वज्झीणे।से तं नोआगमओ दव्वज्झीणे, से तं दव्वज्झीणे ॥सूत्रम् 554 // . से किंतंभावज्झीणे?, 2 दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- आगमतो य नोआगमतो य ।सूत्रम् 555 // से किं तं आगमतो भावज्झीणे?, 2 जाणए उवउत्ते, सेतं आगमतो भावज्झीणे ॥सूत्रम् 556 // से किं तं नोआगमतो भावज्झीणे?, 2 जह दीवा दीवसतं पइप्पए, दिप्पए य सो दीवो। दीवसमा आयरिया दिप्पंति, परं च दीवेंति ॥१२६॥सेतं नोआगमतो भावज्झीणे।से तंभावज्झीणे, सेतं अज्झीणे॥सूत्रम् 557 // 0 सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं। गा। 0 चुयचाविअ। णि। 7 सयं। 0 दीवंति। [२]निक्षेपः। सूत्रम् 547-557 2.1 ओघ, 2.2 नाम, २.३सूत्रालापक निष्पन्नभेदाः। 2.1 ओघनिष्पननिक्षेपेऽज्झीणपदस्य नामादि चतुर्निक्षेपाः। // 394 //

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450