Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 14
________________ ा ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ जना कार्य - जैनधर्म दिवाकर - पूज्यश्री अनुयोगचन्द्रिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् श्री अनुयोगद्वारसूत्रम् ( प्रथमो भागः ) (मालिनी वृत्तम्) शिवसरणिविधानं जीवरक्षकतानं, घासीलालव्रतिविरचितया सुरनरकृतगानं केवलज्ञानभानम् । प्रशमरसनिदानं ज्ञानदानप्रधानं, परमसुखनिधानं वर्धमानं नमामि ॥ १ ॥ (२) करणचरणधारं सर्वपूर्वाधारं, शुभतरगुणधार प्राप्तसंभारपारम् । कलितसकललब्धि लब्धविज्ञानसिद्धि, गणधरमभिरामं गौतमं तं नमामि ॥ २ ॥ ॥ श्री ॥ अनुयोगद्वार सूत्र का हिन्दी भाषान्तर प्रारम्भ मैं उन अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर जिनेन्द्र को नमस्कार करता हूँ कि जिन्होंने ४ घातिक कर्मों का अत्यंत विनाश करके के लज्ञानरूपी अनन्त प्रकाश प्राप्त कर लिया है । और इसी कारण जो मोक्षमार्ग के विधायक तथा अनन्त अब्यावाध सुख के निधान (निधि) बने हैं । भव्य जीवों को जो प्रधानरूप से ज्ञान का दान देते हैं और जीवों की रक्षा करने में रूदा तत्पर रहते हैं । देव और मनुष्य जिनके गुणों का गान करते हैं तथा जो प्रशम (शांत) रस के निदान - आदिकारण हैं ॥१॥ અનુયાગઢાર સૂત્રનું ભાષાન્તર પ્રારંભ— જેમણે ચાર ઘાતિયા કર્મોને સંપૂર્ણત: ક્ષય કરીને કેવળજ્ઞાનરૂપી અનંત પ્રકાશને પ્રાપ્ત કરી લીધેા છે, અને તે કારણે જેએ મેાક્ષમાર્ગના વિધાયક તથા અનંત અન્યબાધ સુખના નિધાન (નિધિ) અનેલા છે, જેઆ ભન્ય જીવાને મુખ્યત્વે જ્ઞાનનું દાન દે છે અને જવાની રક્ષા કરવામા જે સદા તત્પર રહે છે,દેવા અને મનુષ્યા જેમના ગુણા ગાય છે, અને જેએ શાન્તરસના નિદાન આદિકારણ છે એવાં અ ંતિમ તીર્થંકર શ્રી મહાવીર જિનેન્દ્રને હું નમસ્કાર કરૂં છું. ॥ ૧ ॥

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