Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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वाहिनीं वनितां वेदी वाणिज्यं वारिबन्धनम् । वरत्रां वर्द्धनीं वं()तं वटकं वसुकं बटम् ॥१३७॥ ४ वासनावासिता वास्त्र-वीर वासर वागुराः । ब्राह्मणी वाणिनी वाणी वानीरं वानरं वचाम् ॥१३८॥ ५ विहगाख्यं विशब्दं चा-ऽप्यव्ययं चेति वेति च । वर्तरूकं वदान्यं च विद्याद् वाद्यं च वादितम् ॥१३९॥ ६
आद्यौष्ठ्याः पवर्गीयाः ।। अथ मध्यपवर्गीयाः कर्बर: कबूंराबरे । बर्वरी शर्वरी वारु शम्बराडम्बराम्बरम् ॥१४०।। ७ कम्बलं शम्बलं चास्रं सर्बला शाबलोऽपि च । नद्वला बेल जम्बाल - शेबालाश्च प्रकीर्तिता ॥१४१॥ ८ कथ्यन्तेऽथ पवर्गीया बान्तशब्दाश्च केचन । गन्धर्वखर्वगर्वाह्वो जिह्वा पूर्वञ्च दूर्वया ॥ १४२॥ ९ रोलम्बः शतपत्रोर्वी दार्वी चार्वी च दर्विवत् ।। ० ॥१४३।। १० कदम्ब कादम्ब नितम्ब बिम्बा निम्ब प्रलम्बाम्बु विडम्ब बिम्बाः । करम्ब हेरम्ब कटुम्ब कम्बा - स्तुम्बी कलम्बी शब लुम्बि चुम्बाः ॥१४४॥ ११ जम्बू: कम्बूरलाबुश्च शम्बः शुम्बोऽम्बया सह । शिम्बा लम्बा च ताडम्ब-गुडुम्ब स्तम्ब कम्बयः ॥१४५।। १२
पवर्गीय बकारनिर्देशः ।
अथान्तस्थवकारः ॥ विन्दु विद्रुम वरेण्यविक्रमा बिंब वर्त्म विशदाश्च विद्यया । व्याघ्र [वीर ?] बेर वर्करा नार्दरी वशिर वार वागुराः ॥१४६॥१३
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