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ज्योतिषना भारतीय ज्योतिष पर पडेला प्रभाव द्वारा आपणे त्यां आवेलो छे. वराहमिहिरनी 'बृहत्संहिता'मां ते वपरायो छे। ग्रीक शब्द हेलिओस (helics) छे. तेमां ओस ए कर्ताविभक्तिनो प्रत्यय छ ।
शुंगकाळमां जे ग्रीक राजदूत हेलिओदोरोसे विदिशा (बेसनगर) पासे गरुडध्वज प्रतिष्ठित करेलो, तेना नाममां पण आ हेलि शब्द छ ।
'श्राद्धप्रतिक्रमण-सूत्र' उपरनी रत्नशेखर-सूरिकृत अर्थदीपिका-वृत्ति (१४४०)मां हेलि शब्दनो प्रयोग थयो छ :
यादृग् महासती प्रति चिन्तितमचिरेण तादृशमवापि । ग्रहिलो धूलि हेलि परिखिवइ भरेइ पुण अप्पं ।। (पृ.९८ख,पद्यांक ६३)
'तेणे महासती प्रत्ये जेवू (अनिष्ट कार्य) विचार्यु, तेवू ज ते पोते पाम्यो । घेलो सूर्य प्रत्ये धूळ उडाडे तेथी पोते ज धूळथी भराई जाय ।'
ग्रीकमांथी आवेल केन्द्र (अंग्रेजी actre), सुरङ्गा (अंग्रेजी syring:) वगेरे शब्दोमां आ हेखिनो समावेश थाय छे ।।
२. ते ज ते सूर्यवाचक मिहिर शब्द (जे वराहमिहिरना नाममां . पण छे) क्षत्रपकाळनी शक-भाषामांथी सूर्यपूजा साथे आवेल छे (मिथ्र > मिथिर > मिहिर), अने सूर्यदेवना पुजारी मग ब्राह्मणोनुं नाम पण. (मूळ प्राचीन फारसी माग, तेना परथी ग्रीक मागोस mgr द्वारा अंग्रेजी शब्द मेजिक meic आव्यो छे)।
३. हेमचन्द्राचार्ये नोंधेल सूर्यना पर्यायोनी शेष भट्टारके करेली पूर्तिमांनो (९६ नीचे) एक रसप्रद छ : प्रत्यूषाण्डम् ‘वहेली उषानुं ईंटुं'। कोई कविए सूर्य माटे वापरेला रूपक परथी ए नोंध्यो लागे छ । (७) गुंड् (धूळथी) खरडवू'
पासम. मां गुंडण, गुंडिअ शब्दना प्रयोग जैन आगमसाहित्य 'बृहत्कल्पभाष्य' मांथी नोंध्या छे. बोलेए (Bolléc) 'पिंडनियुक्ति', 'ओघनियुक्ति', 'ओ.भाष्य' माथी गुंडिय (रेणुगुंडिय), गुडिज्जाना प्रयोग आप्या छ। पछीथी
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