Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मेघगर्जनाथी हृष्टतुष्ट मयूरो मुक्त कंठे केकारव करता, ऋतुबळे मत्त थईने ढेलोनी साथे नृत्य करे छे ;
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कोकिलोनो टहुकार प्रसरे छे
इंद्रगोप सरकी रह्यछे
;
देडका डणके छे
पुष्पमधुना पाने मत्त, लोल भ्रमर भ्रमरीओ टोळे वळी उद्यानोमां गुंजन करे छे ;
चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारानुं तेज श्याम मेघोने लीधे ढंकाई गयुं छे; गगने मेघधनुष्यनो पट्ट पहेर्यो छे
;
ऊडी बगलीओनी हारोथी मेघो शोभी रह्या छे;
कारंड, चक्रवाक, कलहंस उत्कंठित बन्या छे.
(जैन आगम 'ज्ञाताधर्मकथा', प्रथम श्रुतस्कंधमांनुं वर्षावर्णन) अनुवाद - ह. भायाणी
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