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इतिहास अने सर्वेक्षण तथा विविध परंपरागत सामग्रीना पुनर्मूल्यांकनने लगता बने पक्षोनां दृष्टिबिन्दु अने तेनुं तारण प्रस्तुत करेलां छे । भगवान वर्धमान महावीरना समयनिर्णयनी साधे पण आ चर्चाने निस्बत छे ।
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पार्श्वचंद्रसूरि - विरचित जिन - स्तवन- चतुर्विंशतिका. सं. मुनि भुवनचंद्रजी पार्श्वचंद्रसूरि साहित्य प्रकाशन समिति, मुंबई. १९९७.
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यशोग्रन्थ मंगलप्रशस्ति संग्रह. संपा. यशोदेवसूरि, जयंत कोठारी, जशवंती दवे, पारुल मांकड. यशोभारती जैन प्रकाशन समिति, पालिताणा.
१९९७.
(उपाध्याय यशोविजयजीना प्रकाशित तेम ज अप्रकाशित समग्र संस्कृतप्राकृत ग्रंथो तथा गुजराती - हिन्दी ग्रन्थोना आदि - अंत गुजराती अने हिन्दी अनुवाद साधे आपेल छे।)
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महोपाध्याय शान्तिचन्द्रगणि- विरचित कृपारसकोश. संपादकअनुवादक मुनि जिनविजयजी परिशिष्टो सहित पुन: संपादन, पुनर्मुद्रण विजयशीलचन्द्रसूरि द्वारा. जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खंभात. १९९६.
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हेमचन्द्राचार्य - विरचित वीतरागस्तवः हिन्दी पद्यानुवाद साथे. अनुवादक विजयशीलचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार - शिक्षण निधि, अमदावाद १९९६.
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Doha-giti-kośa of Saraha-pada and Carya - giti- kosa of various Siddhas. Restored Text. Sanskrit Chāyā and Translation. H. C. Bhayani. pp 16 + 140 Prakrit Text Society, Ahmedabad.
1997.
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