Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 44
________________ हिंसारव मुच्चंति हय, पउणीया तक्खणि पवर गय । संदण घण सारहि मण-रमण, भड़-चडयर-सज्जिय नयरि-जण । ५२ भूसिउ सव्वाहरिय(? रणेण)तणु, आरूढु महा- रहि नेमि-जिणु । मंगल जय जय सद्देहिं [सारेहिं], परियरियउ दसहिं दसारेहिं । चल्लिउ परिणणु नेमि-जिणु, पुणु कोडिं जोयइ नयरि-जणु । तुंगऽट्टालेहि चडिन्तियउ, अवरोप्परु जंपहिं रमणीयउ । हले हले धन्नी राइमइ, जसु होसइ नेमि-कुमारु पइ । वेस-विलासिणि-नच्चंतिहि, नड-नच्चण-पेच्छण-गायंतिहि । पत्तउ निसुणवि तहिं कुमरु, आकंद-महा-भरु जीव-खु । भो भो सारहि निग्घिणउ, कसु सुम्मइ सद्दु दयावणउ । ६० पभणइ सामिय जीव-रखु, तुह परिणय कीसी वर-विहवु । संबर-सूयर-हरिण-भरु, सस-गंडा-चित्ता-रोज्झ-वरु । अच्छहिं सव्वे विवाडिया, आणाविणु सामि उवालिया(?) । तुहं जीवाहिवहि जिसिहि,(४०.१)किवि खट्टामाहुर(?) किजिसिहिं । ६४ तक्खणि पभणिउ कुमरेण, संसार-महोयहि-तिनेण । एक्कह जीवह कारणेण, सय लक्ख वहीसिहि लोएण । बालि वालि रहु पच्छमुहु, संचालहि उज्जिल-संमुहउ । उज्जिल-सिहरि चडतेण, संभासिय जणणि कुमारेण । ६८ अम्मे होज्ज तुहुं धीर-मण, हउं लेमि दिक्ख बहु-मल-हरण । तं पर मुच्छ-विहल गय, धरणीयले तक्खण सा पडिय । सित्तिय चंदण-वाणिएण, कप्पूर-सुवासिय--सीयलेण । चेयण लहवि पबोलियं, किँव पुत्त सु चिंतिउ जंपियं । ७२ कवणु कालु तुहु वय-गहणे, सुकुमाल-सुलालिय-बालतणे । ५३. सव्वीहरिय-तणु ५५. परिणउ ५६. चइण्हियउ ६१. पभण सामिय ... परिण कीसी ६२. ससि गंडा ६६. जीवह करणेण ६७ पच्छहउ ६८. उजिल ७०. मुन्छाविविहल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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