Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 55
________________ श्रीपुण्यहर्षरचित लेखशृंगार - सं.मुनि महाबोधिविजय भूमिका : विक्रमना सोळमा सैकाथी अढारमा सैकामां लखायेला ढगलाबंध विज्ञपित्रो आजे प्राप्त थाय छे. परंतु आ क्षेत्रमा हजी जोईए तेवू खेडाण थयुं नथी. बहु जूज विज्ञप्तिपत्रो प्रगट थया छे. आ क्षेत्रमा जो वधु खेडाण थाय तो घणी जैतिहासिक विगतो बहार आवे. प्रस्तुत छे लेखशृंगार. विज्ञप्तिपत्रनी कोटिमां मूकी शकाय एवी आ अद्भुत कृति छे. मोटाभागना विज्ञप्तिपत्रो गद्यमां प्राप्त थाय छे. प्रस्तुत कृति पद्यमां छे. कुल एकसो चोसठ कडी छे. कृतिना कर्ता छे श्रीपुण्यहर्ष मुनि. वि. सं. १६४२ना चैत्र सुद पूनमना स्थंभनतीर्थमां आ कृतिनी रचना थइ छे. आ कृतिनी एक प्रतिकृति अमदावादना संवेगी उपाश्रय, हाजापटेलनी पोळना हस्तप्रतभंडारमाथी प्राप्त थइ छे. प्रतिलेखक नुं शुभनाम छे .... श्रीगजेन्द्रगणिना शिष्य श्रीरीडागणिना शिष्य श्रीरत्नहर्षगणि. प्रतिलेखन स्थळ पण स्थंभनपुर - खंभात छे. हवे आ कृतिना विषय अंगे पण थोडं जाणी लईए. जगद्गुरुश्रीहीरविजयसूरिमहाराज अकबरनुं आमंत्रण स्वीकारी वि.सं. १६३९ना गुजरातथी विहार करी दिल्ली पधार्या. चार चातुर्मास ए बाजु थया. चार-चार वर्षनो विरह मुनिश्रीथी सहन थतो नथी एटले सूरिजीने पत्र लखवा तैयार थया. खंभातथी आ पत्र लख्यो छे फत्तेपुरसीक्रीना सरनामे. सहु प्रथम पांच तीर्थंकरोने नमस्कार करीने भारतना मुख्य देशोना नाम आप्या छे. त्यारबाद मैवाड देशनुं अने फत्तेपुर सीक्रीनुं सुंदर वर्णन छे. पछी कवि श्रीविजयसेनसरि महाराज ना आदेशथी आ पत्र लख्यो छे तेनो उल्लेख करे छे. तथा सूरिजीने पोतानी भावभरी वंदना पाठवे छे. कडी ५३थी सूरिजीना गुणोनुं वर्णन चालु थाय छे. सूरिजीना गुण गावा केटला कठिन छे ते अलग अलग द्रष्टांतोथी समजाव्युं छे. अंते 'अइ गुरु गुण तुम तणा लिखता नावई पार' कहीने आ विषय पूर्ण कर्यो छे. कडी ८८/८९मां आ पत्र मळे एटले आपना स्वास्थ्यनी जाणकारी वळता पत्रमा मोकलशो तेवी विनंति करी छे. साथे आपना हस्ताक्षर प्राप थता अमने आनंद थशे तेम जणाव्यु छ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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