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राग-मधुमाघ देस मनोहर श्रीमेवात जिहां जन न करइ कोणनी ताता लोक घणा दातार तु जय जय । ठाम ठाम ते दाननी साल पर्व घणी जिहाँ विसाला
पथिक पामइं संतोष तु जय जय ॥ २२॥ वस्तु वाना कोना पइ घाट चोर चरड नवि लागइ वाट
कनक उछालई हिंडइ तु जय जय ॥२३॥ वरसइ जिहाँ किणि माग्या मेह धरति धरइ अधिक सनेह
नीपजइ बहुला अन्न तु जय जय ॥२४॥ न पडइ जिहाँ किणि कदाय दुकाल धान्य पाणीतणु सुगाल रंग-रंगीला लोक तु जय जय
॥ २५॥ लोकतणि घरि घणां य दुझाणां दधिअ दुध आपइ रिझाणा ।
अति घनइ अणमांग्या तु जय जय ॥२६।। देस देसना जिहां व्यापारी निज अधिकार धरि अधिकारी ।
_ वसइ ते लोकनी चिंता तु जय जय ॥२७॥ चामल यमुना नदी य मनोहरा वापी कूप अनइ सरोवर। वनवाडी आराम तु जय जय
॥२८॥ सूरीपुर हथनाउर सार मोटां तीरथ जिहां जूहारई।
जाइ पातिक दूर तु जय जय . ॥२९॥ आगरुं बयानु पीरोजाबाद महिम अलवर अभिरामाबाद ।
दीली मथुरां हंसार तु जय जय ॥३०॥ तेजाराप्रमुख बहु गाम कोस कोस अन्तर अभिराम ।
जिन प्रसाद सहित तु जय जय सात व्यसन काढ्य जिहां कूटी।
अमारी सरखी जिहां य वधूटी ।
।। ३१॥
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