Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ 65 अई गुरु तुतणी प्रित प्रित मोह्या अकबरि लघु सेवक विसारीयाओ एक नही उत्यम रित रित प्रित करी पहलु देखाडि छे हो पछि खिर निरनी प्रित प्रित तेहवी उत्यमनी गोपंथ सरखी अवरनीओ धुतारा ते देसना लोक लोक भोलवीया तुझनि लाभ देखाडी अति घणाओ अम्हे गुजराति लोक लोक भोला भद्रक कुडकपट कई नवी वेयाओ खमावे पछी तु दूत दूत पाए लागी गुरुनि अदीकु ओछु ए बोलीय अ वीनवे वडो वजीर धनविजयगणि जे छे गुरुनि मानीतो अ दीजे दूत अरदास अरदास हमाउनंदन स्याही अकबर निजई अ कियावंत गुजरात गुजरात भेजो गुरुजनि उहि देते तुम्ह तणो अ वहलो तु आवे दूत दूत तेडी श्री गुरुनि दान देसा तुहुंनि घणु अ Jain Education International देसा सोवननी जीह जीह मुगट वर रयणन नवलखो हार गलातणो अ धनकनकनी कोड कोड देसा तुहनि दूतपणु ताहारु टालसाओ For Private & Personal Use Only ॥ १३६॥ ॥ १३७॥ ॥ १३८॥ ॥ १३९॥ ॥ १४०॥ ॥ १४१॥ ॥ १४२॥ ॥ १४३॥ ॥ १४४॥ ॥ १४५॥ ॥ १४६ ॥ ॥ १४७॥ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126