Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२.
'कविदर्पण' नामक प्राकृत- अपभ्रंश छंदोविषयक ग्रंथमां (संपादक, ह.दा. वेलणकर, १९६२) बे वार मुग्गड शब्दनो प्रयोग थयो छे. त्यां पण संपादके साचो अर्थ न समजायो होवाथी भळतो ज अर्थ कर्यो छे । कविदर्पणकारे कुमारपालनी प्रशंसा अनेक स्थळे पोताना ग्रंथमां करी छे, अने हेमचंद्रमांथी उदाहरणो आप्यां छे तेथी समय १२मी शताब्दी पछीनो मानी
शकाय ।
दोहा छंदनुं, छंदना नामनो पण श्लेषथी समावेश करतुं दृष्टांत नीचे प्रमाणे छे ('कविदर्पण', र,१५.१, पृ. २३) :
जि नर निरग्गल गलगलह मुग्गल-जंगलु खंति ।
ते प्राणिहि दोहय अहह बहु- दुह - द्रहि बुडुंति ॥
पाठ: चोथा चरणमां इहि पाठ भ्रष्ट छे, दहि जोईए। बीजा चरणमां मुग्गलने बदले मुग्गड जोईए । मुग्गड - जंगलु अने बहु- दुह - द्रहि एम सभास छे । पाठांतर मुग्गलु पण अपपाठ छे । अर्थ छे : 'जे लोको गळगळ करतां मोगड-रूपी मांस खाय छे ते प्राणि-द्रोह करनारा, अरेरे! भारे दुःखना धरामां डूबे छे ।' संपादकने मुग्गलनो अर्थ बेठो नथी. टीकाकारे पण अटकळे ज मुग्गल 'मूर्खा' एवो अर्थ कर्यो छे । में सूचवेल अर्थनुं समर्थन 'कविदर्पण 'मां २ - ३७ - १ मां (पृ. ४७) द्विभंगी छंदनुं कुमारपालनी धार्मिकनैतिक कार्योनी प्रशस्तिरूप जे दृष्टांत आप्युं छे तेमां मळता मुग्गदु उज्झिउ (मुग्गडु एवो पाठ जोईए), संस्कृत छाया मृत- स्वमुज्झितम् ए प्रयोगथी थाय छे। ए दृष्टांत (पाठनी थोडीक अशुद्धि सुधारीने) नीचे आपुं छं :
"
,
किणि अवरिहिँ बुज्झिउ, मुग्गडु उज्झिउ, वारिउ जूउ - वि वेवरिउ ( ? )। कय-धम्मर्द्धसहँ, मइरा - मंसहँ, नाउँ - वि मूलह निट्ठविउ || मरण - ब्भयभीयहँ, सव्वहँ जीयहँ, वज्जाविउ अभय- प्पडहु । रे रायों रहसिहि, सहँ कुमर सिंहिँ, तुडी चडंत किन सडि पडहु ||
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'बीजा कोणे समजीने मृत - स्वनो त्याग कर्यो, द्यूत नो निषेध कर्यो, व्यभिचारने (?) निवार्यो, धर्मलोपक मदिरा अने मांसनुं नाम पण मूळमांथी
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