Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 61
________________ 56 हस्ति जेहनइ पनर हजार बीजा दलतणो नहि पार । श्री जगगुरुना गुण समरंति राग-मालवीगुडु ॥ ४४|| वस्तु ॥ ४५॥ स्याहि अकब्बर मुद्गलाधीस वात पूछी तप कारइ । मोकली अ मेवाडा साहिबखाननइ गंधार थकीअ तेडावीआ । अतिमंडाण गुरुराज हरनइ जगगुरु बिरुद , देइ करी राखइ चतुर चोमास । संवत सोल एकतालए लाभ देइ जास(२) सोत्कण्ठं सोत्कण्ठं लिखति लेख मनोहरं । पुन्यहर्ष गुरु हीरनइ विनइ पूर्वक सादरं सोत्कण्ठं सोत्कण्ठं ॥ ४६॥ सकलदेश तणु विभूषण देश श्रीगुजरात ।। थंभनपास अलंकरी त्रंबावती विख्यातरी सोत्कंठं (२) ॥ ४७॥ श्रीविजयसेनसूरि आदेसइ तिहां थकी करजोडरी । सस्नेहं सोल्लासं स्वकीयमान मोड री सोत्कंठं(२) ॥४८॥ सानन्दं सप्रमोदं विकसितवर कपोलरी । रोमकूप समुल्लसंतं चकित लोचन लोल री सोत्कंठ(२) ।। ४९।। प्रफुल्लित वदनारविंदं भूनिहितोत्तमांगरी । संयोजितशयभालपट्टे वामनीभूत अंगरी सोत्कंठं ॥५०॥ द्वादशाव्र(वर्त्तवंनेनाभिवंद्य निजाशयं । विज्ञपयति विधिसहितं शिष्याणुकनिरामयं सोत्कंठ(२) ॥ ५१।। यथाकृत्यं निर्वहंति सुखसमाधि अछि तिहां । श्रीतातपद प्रसादथी अवधारयो गुरुजी तिहां सोत्कंठं (२)।। ५२।। श्रीगुरुहीरजी तुम्हतणी चउद भुवन मझार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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