Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ 61 ढाल श्री हीरविजयसूरी अकमना । पुण्यहर्षनी वंदना । वंदना अवधारज्यो गच्छपतिले ॥ ९०॥ श्री विजयसेनसूरीश्वरु । तुम्ह पाटि उदयो दिनकरु । दिनकरु भविक जननइ सुखकरु ए ॥ ९१।। श्रीसकलचन्द्र वाचकवर श्रीधर्मसागर गुण आगर । आगर सागर सकल शास्त्र तणु ओ ॥९२॥ वाचक राजकल्याणजी जस नामइ होइ कल्याणजी। __ (कल्याणजी) मोहनवेली कन्दलु मे ॥ ९३॥ पंडितश्री विद्याविमल रिष श्रीरीडो निर्मल । निर्मल चारित्र पाल इण युगई ओ ॥ ९४|| भोजहर्ष गणी लाभहर्ष निजबांधवगणि रत्नहर्ष । रत्नहर्ष सिद्धहर्ष ते हर्षतु ओ ॥ ९५॥ परमहर्ष आदई देइ गुज्जरमध्ये जे केइ ।। जे केइ मुनिवर वंदन वीनवइ ओ ॥ ९६॥ प्रेमविजय वइरागी अ विशेष थकी पाय लागीअ __ पाय लागीअ श्री गुरुनइ कइइ वंदना ओ ॥ ९७|| श्रीगुरुनइ पासइ सोहइ श्रीविमलहर्ष ज मन मोहइ । मनमोहइ दीवाणदीपक श्रीशांतिजीओ ॥९८॥ श्रीसोमविजय समता भर्यो श्रीधनविजय उद्योत कर्यो । उद्योत कर्यो कलियुग जिनसासन तणु मे ॥ ९९।। लब्धिवंत श्रीलाभजी प्रमुख मुनिवर जेअ जी । जेअ जी श्रीगुरुचरण तलइ रहइ ओ ॥१००। वंदना अनुवंदना बावन चंदन समवयना । समवयना जणावज्यो ते माहरी ओ || १०१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126