Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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निहिय-कम्म- विवाग- तण, अवतरहिं महियले विमल - मण | तित्थु पसत्थु पवत्तिसइ, उप्पाडिय केवलु सिज्झिसइ । केत्तिउ कालु तर्हि सरिउ, पुणु माया - वित्ति एउ भरिउ । देक्खवि नव- जोवण - रमणु, रमणीयण - नयण-सुहाव-तणु । एवहिं परिणेहि तुहुं कुमर, घण सइंवर आवहिं कन्न वर । उ (३९.१) ग्गसेण - धुय राइवइ, अवरा वि जसुमइ रुववइ । अलिउल- कज्जल-चिहुर- सिर, उत्तुंग -पओहर मयण - वर । पुन्निँव - सरि-मंडल - वयण, सिय- सउण- गइ वर- मृगनयण । निब्भर - नेह ज राइवइ, तुहुं पुत्तय परिणहि मुद्धमइ । तक्खणि पभणइ नेमि - जिणु, सुणि ताय महारउं तुहुं वयणु । जइ संसारे थिरत्तणउं, किँव होइ त एउं वि सुंदरउं । जीविउ जोव्वणु विज्जु- समु, धणु बंधव परियणु अन्नु जमु । सोक्खह कारणि परिणियई, परमत्थई अप्परं विनडियई । काई अम्मतिं परिणियई, संसारे पडंतहं हेउयई । इच्छमि परिणण सिद्धि-वहु, एगंत कंत जहिं सोक्ख - पहु । पभणिउ पुण - वि दसारेहिं, बलदेव - केसव-बंधवेहिं । कुमरु न मन्नइ तहु वयणु, संसार- सोक्ख- अइ- भग्ग - मणु । कुंकुम - कत्थूरिय - जलेण, कप्पूर- सुवासिय सीयलेण । अवागपरु (?) जल-छंटणेण, सहि मज्जण - वाविहिं सुंदरेण । बोहिहिं लेवणु गुरुयणेण, मन्नाविउ परिणणु सज्जणेण । चितेविणु मणि कुमरेण, (३९. २) हर - हरिय - [द] सार(?) वर-चरणेण । गुरुयणु न वि अवगन्नियइ, जं भणइ तह त्ति अणुट्ठियइ ।
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३२. रमणुं
२९. महीयले । ३०. तित्थु पसत्तु उप्पाडिउ । ३१. भणिउ तणुं । ३३. परहिं । ३४. उग्गसेण-वय रायमइ ३६. पुंनिवं ससि मंडण सिय सउण गयंचर... | ३७. निज्झर ४४. सो वलदेव....
४५. तन्हु त्रयणु
४३. इच्छत्रि ४९. कुमारेण
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३२
लग्रा
४४
जसुंमइ
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