Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 49
________________ विजयमानसूरिकृत 'पट्टक' - सं. मुनि महाबोधिविजय भूमिका : विक्रमना अढारमा सैकामां तैयार थयेल प्रस्तुत पट्टक तर्कसम्राट पू. पं. श्रीजयसुंदर वि. महाराजना संग्रहमांथी प्राप्त थयेल छे. आचार्यविजयमानसूरि महाराजनी आज्ञाथी श्रीलावण्यविजय गणिए आ पट्टक लख्यो छे. आनुं बीजुं नाम सामाचारी जल्प पट्टक छे. प्रतिने अंते 'ए अट्ठावीस' एम लखेलुं छे. गणना करता कुल २६ बोल थाय छे. खास करीने गच्छमां वधी जती शिथिलताने निवारवा अथवा गच्छमां अनुशासनने वधु मजबूत बनाववा पट्टक तैयार करवामां आवे छे. विक्रमना तेरमा सैकाथी आवा पट्टको बनावाया होय तेवू जणाय छे. प्रस्तुत पट्टकना प्रत्येक बोलमां आगमो, पूर्वाचार्यो रचित प्रकरणो तेमज केटलाक पट्टकोनी साक्षी आपी छे. श्रुतव्यवहार अने जितव्यवहारने पण ठेर ठेर प्रधानता आपी छे. __ अहीं साक्षी तरीके आपेला तमाम जल्पो प्रायः अप्रगट छे. जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि महाराजे द्वादशजल्पनी रचना करी छे - ते प्रसिद्ध छे - प्रगट छे. परंतु ते श्रीविजयदानसूरिकृत प्रसादीकृत ७ बोलना अर्थना विसंवाद टाळवा माटे रचायेल छे. अहीं जे क्रमांक १४ अने २०मां श्रीहीरविजयसूरिप्रसादित सामाचारी जल्पनो उल्लेख थयो छे ते द्वादशजल्पथी भिन्न समजवानो छे. अलबत्त, आ जल्प वर्तमानमां प्राप्त थयो नथी. परंतु तेवो एक जल्प रचायो छे ते नक्की छे. श्री विजयदेवसूरि महाराजे वि. सं. १६७२ वर्षे अषाढ सुद बीजना दिवसे पाटण नगरमां आदेश करेल पट्टकमांथी आ वात छती थाय छे. "भट्टा. श्रीहीरविजयसूरीश्वरइ ए बार बोल प्रसाद कर्या तथा भट्टा. श्री विजयसेनसूरीश्वरइं प्रसाद कर्या जे सात बोल तथा भट्टारक श्रीहीरविजयसूरि तथा भट्टा. श्रीविजयसेनसूरीश्वरई बीजाइ जे बोल प्रसाद कर्या ते तिमज कहवा पणि कोणइ विपरित न कहवा,जे विपरित कहस्यइ तेहनइ आकरो ठबको देवरास्यइ ।१।। प्रस्तुत पट्टक जुनी गुजरातीमां छे. क्रमांक नवमां आपेलो वृद्धवाद खास ध्यान खेंचे तेवो छे. 'छ मास उपरांत आचार्य शून्य गच्छनी मर्यादा अप्रमाण थार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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