Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 45
________________ जाणमि विनिविनिय(?) नयण, पाहाणि मउलउं पाव-मण । पुत्त न हिट्ठउ परणियउ, वर-वत्थाहरण-विभसियउ ।। पुत्त न भुत्ता पई विसय, पंचिंदिय-मणहर-वर-सुहय । ७६ पुत्त न भुत्तउं रज्जु पई, जीवंतिय कीसी काइं मई । पुत्त न पेल्लिउ सत्तु-बलु, न-वि अज्ज-वि पयडिउ बाहु-बलु ।। करि-कुंभत्थलि न-वि रमिउ, न-वि अज्ज-वि ति(४०.२)हुयणि जसु भमिउ । पुत्त न परिणिय राइमइ, जा उग्गसेण-धुय रूववइ । ८० भावहिं पभणिउ कुमरेण, भव-भवण-महा-दुह-भीएण । दुत्तरु माइ ए भव-जलहि, परियंतु न लब्भइ को-वि तहिं । सो जि तरेवउ दारुणउ, जर-मरण-रोग-सोगाउलउ । संजम-बोहित्थेहिं चडेवि, तव-पवणे सुपेल्लिय तुरिय-गइ । ८४ संसारिउ सुहं अन्न-जम्मि, न-वि हुँति सहेज्जा नरगम्मि । अम्मे खमेवउं सब्बु पई, जं किंचि किलेसाविया य मई । इवें भणेविणु निग्गयउ, संभासिउ जायवि बप्पु तउ । निव्वर-निट्टर-वयणेहिं, जं किलिसिउ बहुविह-वासरेहिं । ८८ ताय खमेवउं दय करवि, हडं लेमि दिक्ख उज्जिलि चडवि । काई पुत्त वइरागियउ, किन कहिवि होइ(?) अवगन्नियउ । केण पुत्त वेयारियउ, जं उज्जिलि रहवर वालियउ । भुंजि रज्जु माणेहि सुय, पावज्जहि अम्हहं एह किय । ९२ रज्जई विज्जु-सरिच्छाई, न-वि जंति भवंतरे सरिसाइं । बप्पु नमेविणु निग्गयउ, संभासिउ परियणु अप्पणउ । (४१.४) चिंता-सायरे सो पडिउ, अम्ह अज्जु पर रवि अत्थमिउ । ___संभासेविणु नयरि-जणु, पुणु दस-वि दसार महुमहणु । ७९. किरि कुंभ. ८०. पणिय ८९. उजिल्लि ९४. नमेविण निययर... अप्पणउं । ९५. पदिओ... अज्ज पग .... अत्थामओ । ९६. दस वि दसाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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