Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 10
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ 34 प्रासादापसदासन्दी व्यासङ्ग स्तव दस्यवः । प्रसूनं प्रसवो लास्य -मास्यं प्रसभ रासभौ ॥२२३॥ ८४ अवसायः किसलयः कुसूलं च विकस्वरम् । मसृणं प्रासना वासी भस्माकस्मिकघस्मराः ॥२२४॥ ८५ अमावास्याः प्रतिसरः प्रसारो विसरोऽपि च । वसन्तश्च तुसारश्च मसारश्च रसाञ्जनम् ॥२२५॥ ८६ वसुधा व्यवसायास्र - वसन व्यसनानि च । तमिस्रं चास्रघस्रोत्राजस्रविस्रभवासिताः ॥२२६॥ ८७ कैलास लाल किलास विलास लास कर्पास हास कृकलास निवास नासा: । न्यासांसमांस मसि कीकस कंस हंस ध्वंस प्रकुंस पनसा सुधसु प्रवासाः ॥ २२७॥ ८८ निर्यास प्रास वीतंसो - त्तंसालस मलीमसाः । वासा विसं तामरसं वासश्चमसबुक्कसौ ॥ २२८॥ ८९ व्यासावभासदिवस - रस सारस वायसाः । वाहसः पट्टिसोच्छ्वास- मासासि मिसि बुक्कसाः ॥२२९॥ ९० अन्त्यदन्त्याः ॥ मृत्सा चिकित्साप्सरसो बुभुत्सु श्चिकिस्तितं मत्सर मत्सरं च । वात्सायनोत्सारण मत्स्य दित्सु - गुत्सोत्सवोत्साह विधित्सुकुत्साः ॥२३०॥ ९१ मध्यदन्त्याः ॥ Jain Education International कृत्स्नं च लिप्सुरुत्सृष्ट-मुत्सानिर्भर्त्सनोत्सवाः । बीभत्सा धीप्सता भीत्सु-समुच्छे(त्से) कोत्से (त्सु ? ) का अपि ||२३१ ॥ ९२ संयुकदन्त्याः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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