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अनेकान्त/१९
(राजा) थे और नूतन चदिल नाम के राजवंश मे उत्पन्न हुए थे । जिन्होंने किसी कारण वश संसार से भयभीत हो, राज्य का परित्याग कर जिन दीक्षा ले ली थी। और तपश्चरण द्वारा आत्मसाधना में तत्पर थे । वे श्रमण अवस्था में अच्छे तपस्वी और शुद्ध रत्नत्रय के धारक थे । सिद्धान्तशास्त्र रूपी समुद्र की तरंगो के समूह से जिन्होंने पापों को धो डाला था । इनके शिष्य विकल्प योगी थे । इनका समय सभवतः दशवी शताब्दी है ।। ५ ।।
मेघचन्द्र प्रशस्ति (शक सम्वत् १०३७) श्री गोलाचार्यनामा समजनि मुनिपश्शुद्धरत्नत्रयात्मा सिद्धात्माधर्य-सार्थ-प्रकटनपटु-सिद्धान्त-शास्त्राब्धि-बीची संडगाःतसालितांहः प्रमदमदकलाली, बुद्धि प्रभाव. जीयादभूपाल-मौलि-धुमणि-विदलिताघ्रिपब्ज लक्ष्मे विलास ।। पोर्गडे चावराजे नेरदंमङल || वीरणन्दि विन्धेन्द्रसन्ततौ मूल चंदिल नरेन्द्रवशचूडामणिः प्रथित गोल्लेदेश भूपालक किमपि करणेम सः । इन पक्तियो मे भी गोल्लाचार्य से सम्बंधित वही आशय है जो पहिले लिखा है |
उपरोक्त विवरण से यह परिलक्षित होता है कि भारत वर्ष में किसी काल में गोल्लादेश नामक देश का राजा किन्ही कारणो से संसार से भयभीत हो गया और जिनदीक्षा ले ली । दीक्षा उपरांत गोल्लाचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए । परन्तु यह स्पष्ट नही कि गोल्लादेश कहाँ था उसका कौन शासक ने जिन दीक्षा ली ।
श्री यशवंत कुमार मलैया ने एक अप्रकाशित लेख “गोल्लादेश व गोल्लाचार्य की पहचान मे बताया है कि आठवीं शताब्दी मे उधोतन सूरी द्वारा रचित “कुवलयमाला कहा" मे अठारह देश की भाषाओं का उल्लेख मिलता है तथा अन्य ग्रन्थों व चूर्णिसूत्रो में भी यह नाम आते है । परन्तु शिलालेख व भूगोल पुस्तको मे इसका उल्लेख नहीं मिलता । साथ ही यह भी लिखा है कि गोल्लादेश के स्पष्ट उल्लेख केवल श्रवणवेलगोला में पाये जाते है उनमे गोल्लाचार्य नाम के मुनि का उल्लेख है । आगे उन्होंने लिखा है कि यह वही स्थान है जहाँ से गोलापूर्व, गोलालारे व गोलसिघारे जैन जातियाँ निकली हैं ।
श्री मलैया ने उक्त लेख में भाषागत वर्गीकरण करके गोल्लादेश की पहचान सीमा"वह भाग है जहाँ व्रज और बुन्देलखण्डी भाषा बोली जाती है । '' दोनों पश्चिमी हिन्दी के अन्तर्गत है व आपस में काफी समान है । अतः प्राचीन गोल्लादेश की पहचान वही होना चाहिए । तदनुसार गोल्लादेश का विस्तार उत्तर दक्षिण में भिण्ड से सागर जिले के उत्तरी भाग तक रहा । इसमे चन्देलो की राज्य सीमा खजुराहो, महोबा, कालंजर, के अलावा भेलसा, मऊ (जिला झासी) तथा अस्थाई विस्तार उत्तर पश्चिम में कान्यकुब्ज व अहिछत्र तक रहा, तथा ग्वालियर, भिण्ड के आसपास भी रहा । बुन्देलखण्ड का क्षेत्र जहाँ बुन्देलों का राज्य रहा - दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना जिले सागर और दमोह जिलों के उत्तरी