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अनेकान्त/10 आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार प्रकार की सज्ञाओ रुप ज्वर से पीडित एव सदैव आत्म-ज्ञान से विमुख होकर इष्ट-अनिष्ट और राग-द्वेष इन्दियों के विषयो में लीन व्यक्ति को सागार कहते है |30
(ख) बीज और अंकुर की तरह अनादिकालीन अज्ञान के कारण सन्तति रुप परम्परा से आने वाली परिग्रह को छोड़ने में असमर्थ और विषयों मे मूर्छित होने वाले को सागार31 कहते है।
(ग) जो सम्यग्दृष्टि आठ मूल गुणो ओर बारह व्रतो का पूर्ण रुप से पालन करता है अरहत सिद्ध आचार्य,उपाध्याय और साधु इन पाच परमेष्ठियो के चरणो को शरण मानता है, प्रधान रुप से चार प्रकार के दान देता है, पाच प्रकार की पूजा करता है और वेद विज्ञान रुपी अमृत को पीने की इच्छा करता है, वह श्रावक कहलाता है ।32 अंतरग में राग-द्वेष आदि के क्षय की हीनाधिकता के अनुसार प्रकट होने वाली आत्मा की अनुभूति से उत्पन्न सुख का उत्तरोत्तर अनुभव होने वाले और वाह्य मे त्रस हिसा आदि पाच पापो से निवृत्त होने वाले ग्यारह देशविरत नामक पचम गुण स्थान वर्ती दार्शनिक आदि स्थानो म मुनिव्रत का इच्छुक व्यक्ति किसी एक स्थान को धारण करता है, उसे श्रावक मानता हू । श्रद्धा की दृष्टि से देखता
हू/33
(घ) “निर्दोष सम्यक्त्व को धारण करना निर्दोष वारह व्रत का पालन करना और मृत्यु के समय विधिपूर्वक सल्लेखना करना सागार का पूर्ण धर्म है34.
सागार की उपर्युक्त परिभाषाओ का विश्लेषण करने पर निम्नाकित निष्कर्ष निकलते है
(अ) सागार अनादिकालीन अज्ञानता के कारण आहार, भय मैथुन ओर परिग्रह इन चार संज्ञाओ के प्राप्त होने और न होने दोनो अवस्थाओ मे दुःखी रहता है। क्योकि जिससे संक्लिष्ट होकर इस लोक मे और विषयो का सेवन करने से परलोक मे जिसके कारण दुख रहता है। क्योकि जिससे सक्लिष्ट होकर इस लोक मे और विषयो का सेवन करने से परलोक मे जिसके कारण दु ख मिलता है, उसे सज्ञा कहते है । संक्षेप मे इच्छा को सज्ञा कहते हैं । इन सज्ञाओ के भोगने से पापार्जन होता है। अत परलोक मे दु ख की प्राप्ति होती है।
(आ) श्रावक सदैव सचित्त भाई-बन्धु आदि में और उचित्त मकान आदि में ममत्व भाव रखता है । अहंकार और ममकार रखने के कारण इष्ट पदार्थो मे राग करता है और अनिष्ट पदार्थो मे द्वेष करता है। राग-द्वेष के कारण वह आत्मा के स्वरुप का चिन्तन नही कर पाता है। अत वह ससार मे भटकता रहता है। (इ) श्रावक परिग्रह में आसक्त होता है। (ई) इन्द्रियों के विषयों मे लीन रहता है। (ऐ) श्रावक आठ मूल गुणों का पालन करता है। (ऐ) श्रावक 12 व्रतों का पालक होता है।