Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 116
________________ अनेकान्त/26 कितु उसने आहार लेने से इन्कार कर दिया क्योकि वह नियमानुकूल नही था। इस पर उन देवो ने उसके मार्ग में काटे और नुकीले ककर बिछा दिए। मगर वह इस उपसर्ग को भी शांतिपूर्वक सहन करता रहा । अतमे उन्होने नृत्य, संगीत का भी आयोजन किया तथा सिद्धपुत्र का रूप बनाकर उससे कहा कि यौवनावस्था मे तप करना उचित नही। इन सब बातो से भी जैन मुनि की कठिन दीक्षा के लिए उत्सुक राजा पद्मरथ विचिलत नही हुआ। इस पर वे देव धन्य कह कर तापस जमदग्नि की परीक्षा लेने के लिए निकले। जमदग्नि के तप की परीक्षा, दोनो देवो द्वारा चकवा और चकवी का रूप धारण कर जमदग्नि की दाढी मे निवास करना और उनके वार्तालाप तथा जमदग्नि का नेमिकोप्टक नगर में जाकर जितशत्रु से उसकी कन्याओ से विवाह सबंधी प्रश्न एव रेणुकी से विवाह आदि की कथा वही है जो कि ऊपर दी जा चुकी है। केवल इतना ही अंतर है कि पति रूप में अस्वीकार किए जाने पर जमदग्नि ने अपने शाप से राजकन्याओ को कुबडी बना दिया। जब रेणुकी गर्भवती हुई, तो जमदग्नि ने उससे कहा कि मै तेरे लिए एक चरू मत्रित करके तैयार कर रहा हूं। यदि त उसका भक्षण करेगी, तो उसके प्रभाव से ब्राह्मणो मे श्रेष्ठ पत्र प्राप्त होगा। इस पर रेणुकी ने कहा कि हस्तिनापुर मे उसकी बहिन अनंतवीर्य राजा की पत्नी है। उसके लिए एक मत्रसाधित क्षात्रचरू तैयार कर दीजिए। जमदग्नि ने दोनों चरू रेणुका को दे दिए। इधर रेणकी ने सोचा कि मै वन मे अकेली रहती हू । यदि मेरा पुत्र क्षत्रिय हो तो अच्छा रहेगा। इसलिये उसने क्षात्रचरू का भक्षण कर लिया। दोनों ने पुत्रो को जन्म दिया। रेणुकी ने अपने पुत्र का नाम राम रखा और उसकी बहिन ने अपने पुत्र कानाम कृतवीर्य रखा । राम क्षत्रिय तेज के साथ बड़ा होने लगा। एक दिन एक विद्याधर अपनी आकाशगामी विद्या भूल गयाऔर अतिसार रोग से पीडित होगर जमदग्नि के आश्रम में पहुचा। राम ने उसकी सेवा की जिससे प्रसन्न होकर विद्याधर ने राम को पारशवी अर्थात् परशु संबधी विद्या दी। उसे सिद्ध कर राम परशुराम के रूप मे प्रसिद्ध हुआ। ___ कालांतर मे रेणुकी अपनी बहिन के यहा हस्तिनापुर गई वहा उसके जीजा ने उसके साथ कामक्रीडा की जिसके फलस्वरूप रेणुका ने एक पुत्र को जन्म दिया। फिर भी आसक्तिवश उसे जमदग्नि उसे अपने यहा ले आया। रेणुका को पुत्रसहित देखकर परशुराम को बहुत क्रोध आया और अपने परशु से उस बालक का वध कर डाला । अनंतवीर्य को जब यह ज्ञात हुआ, तो उसने जमदग्नि के आश्रम पहुचकर सब कुछ नष्ट कर डाला। इस कांडकी जानकारी मिलते ही परशुराम ने अपने फरसे से अनन्तवीर्य के टुकड़े-टुकडे कर डाले। लोगों ने उसके अल्पवयस्क पुत्र को राजा बनाया । वडा होने पर जबउसे अपने पिता की हत्या का पता चला, तो उसने जमदग्नि का वध कर डाला। इससे परशुराम का क्रोध भडक उठा और उन्होंने हस्तिनापुर जाकर कृतवीर्य को मौत के घाट उतार दिया तथा स्वय राजकार्य संभाल लिया । कृतवीर्य की गर्भवती रानी एक आश्रम में पहुंची जहा तापसो ने

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