Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 114
________________ अनेकान्त/24 उनके दोनों पुत्र वन से लौटे, तो उन्हे क्रोध आ गया क्योकि पिता के वध को कोई भी सहन नही कर सकता है। वे दोनो अयोध्या पहुचे और वहा युद्ध कर सहस्रबाहु को मौत के घाट उतार दिया। सहस्रबाहु की रानी चित्रमती के बड़े भाई शाडिल्य को जब यह ज्ञात हुआ कि दोनो भाई उसकी बहिन की सतति को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहते है, तब वह अपनी गर्भवती बहिन को गुप्त रीति से लेकर सुबन्धु नाम निरनय मुनि के पास वापस आने तक के लिए छोड आया। रानी चित्रमती ने एक पुत्र को जन्म दिया। वन देवताओ और देवियो ने यह जानकर कि वह भावी चक्रवर्ती है, उसकी रक्षा की। बालक बड़ा होने लगा। एक दिन रानी ने बालक का भविष्य पूछा, तो मुनि सुबन्धु ने बताया कि सोलह वर्ष की आयु में वह चक्रवर्ती होगा। इस बात की पहिचान इस बात से होगी कि वह अग्नि से जलते हुए चुल्हे के ऊपर रखी कडाही के धी के मध्यमे रखे गरम-गरम पुओं को निकालकर खा लेगा। कालांतर में तापस शंडिल्य अपनी बहिन चित्रमती को अपने घर ले गया। वह बालक पृथ्वी को छूकर उत्पन्न हुआ था, इसलिए मामा ने उसका नाम सुभौम रखा । वह शास्त्रो का अभ्यास करता हुआ गुप्त रीति से बढने लगा। उधर रेणुकी के दोनो पुत्रो ने क्षत्रिय वंश को इक्कीस बार निर्मूल कर दिया था। संबंधित श्लोक है अथ तो रेणुकीपुत्रौ प्रवृद्धोग्रपराक्रमै। त्रिः सप्तकृत्वों निम्मपाद्य क्षत्रियान्वयम्।। 56-127 1 1 इन दोनो भाइयो ने मारे गए राजाओ के मस्तको को पत्थर के स्तंभों में संग्रहीत कर रखा था और वे राजलक्ष्मी का उपभोग कर रहे थे एक दिन एक निमित्तज्ञानी ने मंत्रित फरशे के स्वामी इन्द्रराम को बताया कि उनका शत्रु उत्पन्न हो चुका है। यह केसे जाना जाए यह पूछने पर उसने बताया कि अपने शत्रुओ के जो दात तुमने इकट्ठे कर रखे हैं, वे जिसके भोजन के रूप मे परिणत हो जाएं, वही तुम्हारा शत्रु होगा। यह सुन परशुराम ने उत्तम भोजन कराने वाली एक दानशाला खुलवाई। _कुछ समय बाद सुभौम को अपने पिता का वध और अज्ञातवास का रहस्य मुनि सुबन्धु से ज्ञात हो गया। परशुराम की घोषणा सुन कर सुभौम परिव्राजक का वेष धारण कर अयोध्या पहुंचा और दानशाला मे गया। वहा उसे कर्मचारियो ने राजाओं के संचित दांत दिखलाए किंतु वे दांत सुभौम के सामने शालि चावलो के रूप में परिणत हो गए। यह समाचार पाकर उसे पकड कर लाने की आज्ञा दी गई किंतु सुभौम ने जाने से इन्कार कर दिया। उससे परशुराम को बडा क्रोध आया। वे सेना सहित युद्ध के साधन लेकर आ गए। सुभौम भी उनके सामने आ खडा हुआ। परशुराम ने सेना को युद्ध की आज्ञा दी किंतु जिस देव ने जन्म से लेकर अभी तक सुभौम की रक्षा की थी, उसके प्रभाव से वह उसके सामने नही ठहर सकी। तब परशुराम ने अपना हाथी सुभौम की ओर बढाया कितु उसी

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